मुलाकातों का इंतज़ार

जाने कहां बिछड़ गए वो दिन,

जब दिल में एक तमन्ना होती था,

किसी से मिलने को बेताब रहता था,

चंद पलों के दीदार से खुशियों की रौनक होती थी,

और होती थी हरएक बात उनकी,

बातें अब भी बाकी हैं,

मुलाकातों का इंतजार अब भी है,

पर ना अब वो हैं, ना ही वह वक्त।

उनकी यादें जब सताती है तो,

आंखों से आंसू नहीं बहता है,

कई बार सोचा, वह क्यों आती है यादों में,

जब प्यार नहीं है तो भूला क्यों नहीं देते,

पर हर बार भूलने की असफल कोशिश,

हरबार भूलकर उसी को याद करना,

यादों में उसकी धुंधली छवि,

लटों का धीरे से उठाकर पलकें झुकाना,

अब वो यादें गईं, वक्त के साथ मोहब्बत गई,

और साथ जीने की तमन्ना।

4 comments:

  1. मन की गहराइयों से निकली अभिव्यक्ति / चन्दन जी आज हमें सहयोग की अपेक्षा है और हम चाहते हैं की इंसानियत की मुहीम में आप भी अपना योगदान दें / पढ़ें इस पोस्ट को और हर संभव अपनी तरफ से प्रयास करें ------ http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/05/blog-post_20.html

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  2. Bandhu aisi kavita se behtar hai "kavita" ko baksh dena. Apse gujarish hai ki kavita ke man-samman ka khayal rakhte hue is vidha mai haath nahi ajmaaye. Apke haath saaf hi rahe to behtar... Sesh shubh. Ishwar apko sadbudhi dain... Ise comment samajh ker khush hone ki koshish na kare...ye majboori ki baate hain

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  3. ABHOT KHOB CHANDAN JI...... OR AJIT JI AGAR AAP KO KAVITA PASAND NAHI TO US MAIN CHANDANJI KI KOI GALTI NAHI HAI.....

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