कौन है आम आदमी का पैसाखोर

आजकल हो क्या रहा है तो बस राजनीति के नाम पर तमाशा। दरअसल हकीकत है कि आजकल सरकार का खर्च दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। इसलिए वह खुद पर खर्च के पैसा जुटाने की कवायद के तहत कभी टैक्स बढ़ाती है तो कभी चीजों की कीमत बढ़ाती है। उन्हीं चीजों की कीमत बढ़ाती है, जिसका असर देश के बड़े तबके पर पड़ता है। हाल में झारखंड में मधु कोड़ा 50, 000 करोड़ रुपया निगल गया, जांच जारी है। है किसी सरकार या नेता या जांच अधिकारी की मजाल जनता का यह पैसा वापस उसकी झोली में लौटा सके नहीं। ठीक इसी तरह बरसों पहले लालू यादव जानवरों के चारा के नाम हजारों करोड़ डकार गए। बाद में उन्हें इसके इनाम के तौर पर रेल मंत्री बनाया गया। अब कांग्रेस समर्थन के नाम पर लालू को ब्लैक मेल करती है। आईपीएल में बेइंतरा ब्लैक पैसा लगा है, पर किसी की मजाल की उसे उसके सही हकदार तक पहुंचा सके। नहीं। स्विस बैंक का किस्सा भूल ही जाइए। तमाम मलाईदार पदों पर नेता बैठे हैं, वहां खजाना खाली करके ही वह हटते हैं। जब हटते हैं तो दूसरे के लिए कुछ नहीं बचता। मार पड़ती है आम आदमी पर। कभी टैक्स बढ़ोतरी के तौर पर तो कभी महंगाई के नाम पर बस किराया, आटा-चावल-दाल-गेहूं की कीमत में वृद्धि के तौर पर। अब मेरी समस्या इन सामानों की कीमत में बढ़ोतरी से नहीं है। मेरा कहना है कि इसी अनुपात में सभी की सैलरी, इनकम का स्रोत और रोजगार भी तो बढ़ाइए। नहीं तो नक्सली कभी खत्म नहीं होंगे। चाहे सोनिया गांधी ही यह क्यों न कहे कि नक्सल प्रभावित वाले इलाकों तक विकास का न पहुंचना ही मूल समस्या है। पर वह यह कहने के अलावा कर क्या रही हैं। कुछ नहीं। मुझे कांग्रेस की वंशवादी परंपरा से भी कोई परेशानी नहीं है। परेशानी इस बात से है कि राहुल के पिता राजीव गांधी भी कहते थे कि आम आदमी तक एक रुपया में से पंद्रह पैसा भी नहीं पहुंचता है। आज राहुल गांधी भी वहीं बात कह रहे हैं कांग्रेस के इस युवराज ने तो वह पैसा और भी कम कर दिया। मैं कहता हूं यह पैसा आम आदमी तक पहुंचाने वाला कौन है, जो बीच में ही सारा पैसा गबन कर जा रहा है? और भला पैसा न पहुंचने की जानकारी इन शख्सियतों को है तो इन्हें यह भी पता होगा कि पहले कौन पैसा नहीं पहुंचाता था और आज भी जनता के उस पैसे को कौन अपने बाप की दौलत समझ रहा है। लेकिन उसकी बात भला ये लोग क्यों करने लगे। चार कुर्सियों वाली सरकार की एक टांग जो टूट जाएगी। किस्सा हाल ही का है। यूपी में कांग्रेस और मायावती की जंग जगजाहिर है। राहुल दलितों के घर ठहरकर मायावती को अक्सर चिढ़ाते रहते हैं. लेकिन जब पिछले दिनों संसद में उनकी समर्थन की जरूरत पड़ी तो कुछ दिनों पहले तक मायावती की मूर्तियों की आलोचना करने वाले उसे सही ठहराने लगे। मायावती की समर्थन के बगैर कांग्रेस की सरकार बचने वाली नहीं थी। यह सभी जानते हैं। पर हाल में मीडिया में देखा, राहुल जी कह रहे हैं, मायावती से कभी कोई करार नहीं हुआ और न कभी भविष्य में होगा। कहां तो राहुल से नई सोच और राजनीति की नई अवधारणा की अपेक्षा थी, और कहां वह भी पुराने ढर्रे पर चल पड़े। यह हाल कांग्रेस और राहुल के युवा बिग्रेड के सभी नेताओ की ही है। नवीन जिंदल खाप पंचायत के समर्थन में आ गए हैं। हत्यारी पंचायत के सामने दंडवत हो गए।

3 comments:

  1. is desh ka mahaan neta, aur sadhu


    http://sanjaykuamr.blogspot.com/

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  2. अंत में सब वोट का खेल हो जाता है.

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  3. आज नेता राजनीति को व्यापार के तौर पर कर रहे हैं । जितनी पूंजी लगाते हैं उसपर उतना ही ज्यादा मुनाफ़ा चाहिए । मंहगाई तो बढ़ेगी ही ।

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