मीर का कबूलनामा और भारत-पाकिस्तान का मीडिया

हामिद मीर पाकिस्तानी हैं। वह एक पत्रकार हैं। उनका मुल्क या मजहब भले ही क्या है हमें उससे कोई मतलब नहीं। पर पत्रकारिता के पेशे में वह दुनिया के कई धुरंधर और कई दिग्गजों से कहीं बेहतर हैं। पूरे दक्षिण एशिया में उनसे बेहतरीन टीवी पत्रकार का मिलना मुश्किल है। आज भारत में ही कई ऐसे नामी-गिरामी और नामचीन पत्रकार हैं, जिनकी ताकत के आगे सत्ता भी नतमस्तक है। लेकिन इन सबमें वह बात नहीं जो हामिद मीर में है। हमारे भारतीय पत्रकार अपनी उठा-पटक में लगे रहते हैं। अब पत्रकारिता की दुनिया की यह कड़वी हकीकत हो चुकी है। पर मीच में सच को कबूलने का माद्दा है। उन्होंने 26 मार्च के अवसर पर एक लेख लिखा। 26 मार्च क महत्व क्या है? क्यों पाकिस्तान को इसे माफी दिवस के तौर पर मनाना चाहिए? आज पकिस्तान में सेना की अहमियत को कोई नहीं झूठला सकता। 1971 के जंग में बांग्लादेश में उनकी वहशी हरकत और क्रूरता के बारे में आज के दौर में मीर ने ही कुव्वत जुटाई है। आज जबकि भारत में पत्रकारिता सानिया मिर्जा की शादी होने से पहले तोड़ने में लगी थी, आम आदमी की बात करने के बजाय उसे बेचने के बात कर रही है, देश के दो बड़े मीडिया दिग्गज पर एक मंत्री को संचार मंत्रालय दिलाने के लिए लॉबी करने का आरोप लग रहा है, हम भूत-प्रेत से आगे निकल नहीं पा रहे हैं, सरकार से साठगांठ करके उसके पक्ष में खबरे दिखा रहे हैं, आम आदमी से जुड़ी, उसके हितों की खबरों को भांड़ में रखकर पत्रकारिता के पेशे को ठेंगा दिखा रहे हैं, ऐसे में हमें पाकिस्तान के इस पत्रकार से सीखने की जरूरत है। ऐसा नहीं है कि भारत में ऐसी सच्ची पत्रकारिता नहीं है। है, लेकिन जब वह सच्चाई का साथ देते हैं। आम आदमी की बात करते हैं तो सरकार की ओर से उन्हें सजा झेलनी पड़ती है, वह भी बेवजह। जब बीजेपी सत्ता में थी, तो तहलका के स्टिंग ने सत्ता की चूल हिला कर रख दी थी। फिर उसके संपादक का जो हाल इन भाजपाइयों ने किया, वह न याद किया जाए तो ही बेहतर। यही आजकल पाकिस्तान में भी मीर शायद को सच बोलने की सजा दी जा रही है। उन्हें एक टेप के आधार पर तालिबान का समर्थक बताया जा रहा है। पर यह सरकार की कार्रवाई की अपेक्षा बदले की कार्रवाई ज्यादा नजर आ रही है। फिलहाल मैं आपको हामिद मीर के उस लेख से वाकिफ करना चाहता हूं, जिसे उन्होंने 26 मार्च के सिलसिले में लिखा। अपना सच कबूला। पाकिस्तान का सच कबूला। अंग्रेजी का यह लेख खुद मैंने अनुवाद किया, सो थोड़ी-बहुत भाषाई छूट मैंने लेने की कोशिश की। उनसे अनुमति नहीं ली, फिर भी उनका साभार अदा करता हूं। अगले पोस्ट में उनकी बातों को रखूँगा।

3 comments:

  1. Nothing gr8. As usual paki took 40 years to accept the truth.

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  2. mir ki mahanta se mohit patrkar

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  3. आप कह रहे हैं तो ठीक ही कह रहे होंगे। पर सोच लिया है कि नहीं।

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