मौत का यह सिलसिला

ये मौत है उनकी,
जिनका कोई कसूर नहीं,
मरने-मरने वालों का आपस में कोई नाता नहीं,
बह रहे फिर भी खून,
जैसे जीवन का कोई मोल नहीं
हर मौत के बाद मातम,
फिर मौत,
जनता के रखवाले कर रहे हैं ठेकेदारी,
छोड़ राजीनीति, कूद पड़े हैं धंधे में,
सिलसिला ये कब थमेगा,
आँखों में चिंगारी लिए,
पूछ रहा हरकोई यही सवाल,
कब थमेगी लाशों की राजनीति,
कब रुकेगा नक्सलवाद,
और कब बुझेगी असमान विकास की प्यास।

1 comment:

  1. लाशों की इस राजनीति में सिलसिला किसी चमत्कार से ही रुकेगा.

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