विकली ऑफ और अतिथि

तीन घंटे सोने के बाद आपका दिमाग क्या कहता होगा? सभी को जवाब मालूम है। रात के साढ़े तीन बजे सोने के बाद वीकली ऑफ वाले दिन यानी संडे को सुबह साढ़े ग्यारह बजे उठा। एक दिन पहले सिर्फ तीन घंटा ही सोया था। वजह कुछ सामान्य सी बात। कमरा बदलना था। यह काम मुझे हमेशा से बकवास लगता रहा है। जब दसवीं की के बाद अपने पास के शहर (गांव में लोग शहर उसे कहते हैं, जहां दो-तीन सिनेमा हॉल, कुछ छोटे से होटल और लोगों के इधर-उधर की जरूरत की चीजें मिल जाया करती हैं।) में आगे की पढ़ाई के लिए गया तो वहां भी भैया ने रेंट पर कमरा ढूंढ के दिया। उसके बाद कभी-कभी पापा आते देखने तो ढंग से कमरा साफ करते थे। हालांकि सफाई मैं भी रोज करता था। क्योंकि गंदगी से नफरत मुझे भी थी। फिर भी जब पापा सफाई करते तो पता नहीं कहां से ढेर सारी गंदगी निकल आती थी। यह है पापा का नजरिया, जो अपने बेटे की हर बात से वाकिफ होते हैं। उन्हें पता होता है कि मेरा बेटा क्या कर सकता है और क्या नहीं। हाल में एक फिल्म आई थी अतिथि तुम कब जाओगे? कभी-कभी लगता है, वाकई ऐसा लगता है कि पुछूं अतिथि तुम कब जाओगे। यदि तुम नहीं जाना चाहते तो अब आप ही मेरे घर में रहो, मैं ही जाता हूं। यही कुछ वाकया इस छुट्टी वाले दिन भी हुआ। मैंने सोचा इस वीकली ऑफ पर तबियत से आराम करूंगा, लेकिन मेरी यह तमन्ना धरी की धरी रह गई। पिछले तीन सप्ताह से ऐसा ही हो रहा है। बहुत गुस्सा आता है। क्या अतिथि के पास दिमाग नहीं होता है। क्या वह दूसरों की समस्या के बारे में नहीं सोचता है। मानों वह दूसरो के घरों पर ही दिमाग पर भी कब्जा कर लेता है। अतिथि से शिकायत नहीं है, परेशानी उसकी बातों और व्यवहारों से है।

2 comments:

  1. atithi hain saahab devta hain saakshaat...aur ab dev kahan pooje jaate hain..:)

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  2. जरा तफसील से बातें और व्यवहार बताते तो हम भी हूँ हाँ करते साथ साथ..हा हा!!

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