अमीरों की आमदनी की तरह बढ़ती मंगाई

महंगाई की मार झेल रही जनता के लिए एक और मुसीबत आने वाली है। हालात अब भारत में बगावती होने वाले हैं। यदि ऐसा नहीं है तो होना जरूर चाहिए। जिस तरह हररोज अमीर की आमदनी दिन दोगुना और रात चौगुनी बढ़ रही है, उसी तरह दाल-चावल-गेहूं-नमक-तेल की कीमत क्यों बढ़नी चाहिए। बिजली, बस किराया, ऑटो किराया गरीबों की aamdanee तरह कम क्यों नहीं होनी चाहिए। क्या दुनिया में सिर्फ हर चीज की बढ़ोतरी होती है। फिर देश के 77 फीसदी लोगों की आमदनी क्यों नहीं बढ़ रही है? जनवरी महीने में ही दिल्ली सरकार ने बसों का किराया दोगुना कर दिया। डीटीसी के घाटे की भरपाई के लिए। किराया बढ़ाने से मुनाफा तो नहीं हुआ, पहले से और अधिक घाटा बढ़ गया। एक फिर चार महीने बाद इन बसों समेत निजी बस वाले भी किराया बढ़ाने वाले हैं। वजह यह है कि दिल्ली में सीएनजी पर चलने वाली बसें और ऑटो की कीमत प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कमेटी ने बढ़ाने का फैसला लिया है। इसकी कीमत बढ़ाने से जनता पर सरकार की महंगाई का हंटर आम आदमी पर बरसने वाला है। भारत सरकार के ऊर्जा मंत्री सुशील शिंदे ने तो बिजली की कीमत एक रुपया प्रति यूनिट बढ़ाने की घोषणा भी कर दी है। सुशील शिंदे को सरकार का मंत्री इसलिए कहा क्योंकि वह आम जनता की नहीं सरकार के हितों को ध्यान रखकर यह फैसला लिया है। इन सबके के लिए यदि कोई जिम्मेदार है तो वह हम ही हैं। यानी भारत का आम आदमी। बेवकूफों की तरह सरकार के सभी फैसलों पर घोड़े की तरह हिनहिनाते रहते हैं। जरा सोचिए रिछले दिनों में कितने ऐसे फैसले लिए गए जो आम आदमी को राहत देने वाली रही हो। बात कर रहे हैं नक्सलियों के हमले की। उनका हमला जायज नहीं है। सौ फीसदी गलत है। लेकिन उनके मकसद के बारे में यही नहीं कह सकते। विकास के नाम पर हररोज दैनिक जरूरतों की कीमत बढ़ाई जाएगी तो क्या होगा। मैं यह ठोक कर कह सकता हूं कि नक्सलियों के बड़े मेता भले ही थोड़े बहुत साक्षर या पढ़े लिखे हों। लेकिन जो नक्सली लड़ाके का काम करते हैं वह दीन-हीन हैं और बंदूक चलाने के अलावा रोजी रोटी का कोई दूसरा हुनर उन्हें नहीं पता है।

1 comment:

  1. लेकिन जो नक्सली लड़ाके का काम करते हैं वह दीन-हीन हैं और बंदूक चलाने के अलावा रोजी रोटी का कोई दूसरा हुनर उन्हें नहीं पता है।


    भाई मेरे, यह हुनर सीख कर वो पैदा नहीं हुए थे..यह भी रोजी रोटी के लिए ही सीखा है उन्होंने...आवश्यक्ता है गरीबों के लिए व्यवसाय के उचित अवसर उपलब्ध कराने की और उसके लिए उपयुक्त हुनर सिखाने की.

    अन्यथा जहाँ रोटी का जुगाड़ नजर आयेगा...जो सपने दिखा लेगा..वो हुनर वो सीख लेंगे फिर वो भले ही बंदूक चलाने का ही क्यूँ न हो.

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