हाथ की पांचों अंगुलियां एक जैसी नहीं होती हैं। यही बात हमारे देश भारत पर भी लागू होती है। कानून की नजर में सभी प्रदेश और नागरिक समान हैं। पर हक़ीक़त ऐसी नहीं है। यह शासक-प्रशासक और जनता अच्छी तरह जानती है। हमारे पूर्वोत्तर राज्यों में क्या हो रहा है किसी को कुछ पता नहीं चल पाता है। बजाय इसके कहीं चीन ने हमारे इलाकों पर अतिक्रमण तो नहीं कर लिया है। पूर्वोत्तर में चीनी अतिक्रमण के अलावा कोई दूसरी बड़ी खबर सुर्खियों में नहीं आ पाती है। हमारे पीएम से लेकर बड़े नेता तक कश्मीर की ही यात्रा, सैर या दौरे पर जाते हैं। पूर्वोत्तर जाने से भला उनको फायदा भी क्या हो सकता है? तभी तो हमारे प्रधानमंत्री भी कश्मीर की अहमियत समझते हैं और वहां का दौरा करते हैं। लाखों की परियोजना की घोषणा करते हैं। सरकार की सर्वेसर्वा सोनिया गांधी भी जाती हैं और विकास परियोजनाओं का एलान करती हैं। हाल के समय में मुझे काफी जोर देने पर भी याद नहीं आता कि सरकार का कोई बड़ा नेता या मंत्री पूर्वोत्तर की खोजखबर लेने गया हो। जम्मू-कश्मीर में अक्सर हिंसक आग उठती रहती है। पिछले साल वहां काफी हो-हल्ला मचा। जम्मू पर आरोप लगा कि उसने कश्मीर के लिए दैनिक जरूरतों के सामानों को ब्लॉक कर दिया है। उसे कश्मीर नहीं पहुंचने दिया जा रहा है। कश्मीर जाने वाली गाड़ियों को तोड़ा-फोड़ा जा रहा है। इसके बाद कश्मीरियों ने पाकिस्तान से व्यापार की मांगे उठाई। ताकि भविष्य में जम्मू के लोग इस तरह के कदम उठाए तो उन्हें खाने के लाले नहीं पड़े। वह पाकिस्तान से रसद वगैरह मंगा सकें। यह सभी को मालूम है कि पाकिस्तान रसद के नाम पर क्या व्यापार करता है। वहीं अब हम पर्वोत्तर की बात करें तो करीब 50 दिनों से मणिपुर में आर्थिक नाकाबंदी जारी है। लोगों तक जरूरी चीजें नहीं पहुंच पा रही हैं। यह ब्लॉकेड केंद्र और एनएससीएन (आईएम) के बीच बातचीत को लेकर है। मसला कोई भी हो पर हमारी सरकार इस मामले में उतनी उतावली नहीं दिखती, जितनी वह जम्मू या फिर उसके वोट बैंक से जुड़े मुद्दे पर नजर आती है। पूर्वोत्तर के राज्य जैसे उनके लिए अछूते हैं। वहीं के लोगों की समस्याएं मानों, उनके लिए भारत की समस्या नहीं दिखती। यहां रसद की ब्लॉकेड होने पर लोग चीन से व्यापार की बात नहीं करते। पर हमें समझना चाहिए कि काफी लंबे अरसे से पूर्वोत्तर का मसला टालते आ रहे हैं। हर बात की हद होती है। पानी तो सर से पहले ही गुजर चुका है। शायद सरकार यह सोच रही है कि कुछ समस्याएं खुद-ब-खुद निपट जाती हैं। इसलिए लोगों को उनके हाल पर छोड़ना ही बेहतर है। यह लापरवाही एक दिन चिंगारी बन दिल्ली की बारूदी सत्ता में भयंकर आग लगाने की तैयारी है।
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