उसे गरीबी और इज्जत की जिंदगी पसंद नहीं थी।

उसे गरीबी और इज्जत की जिंदगी पसंद नहीं थी। गरीबी भगाने के लिए वह भाग गई......पिछले अंक में आपने यहाँ तक पढ़ा, अब आगे की कहानी आपके सामने है
फिर गांव में शादी थी। उसी के घर में थी। उसकी बहन की शादी। तीन बहन थी। बड़ी वाली तो वह खुद, जिसने भाग के शादी कर ली। मझली की शादी में वह नहीं आई थी। इस पर, उसकी मां पागलों की तरह हो गई थी। शायद, बड़ी बेटी के न होने का गम सालता हो। आखिर मां कैसे अपने कोख की औलाद को भुला दे। पर, बाप लोकलाज के डर से नहीं बुलाना चाहता था। मुझे अभी भी याद है, जब उनकी मझली लड़की के तिलक के रस्म में गया था तो चाचाजी ने मुझसे कहा था कि अगर कोई पूछे कि कितने बहन हैं तो कहना, दो। बड़ी वाली का नाम मत लेना। हालांकि मुझे किसी को कुछ बतलाने की नौबत नहीं आई। एक तो इसलिए कि किसी ने मुझसे पूछा ही नहीं या फिर दूसरी बात यह हो सकती है कि उन्हें सब पता हो और वह कोई बखेरा खड़ा करना नहीं चाहते थे। इस बार शादी चाचाजी के छोटी बेटी की थी। दो-चार दिन पहले से ही ऐसा माहौल था कि इस बार तो बड़ी बेटी जरूर आएगी। यदि ऐसा हुआ तो चाचाजी कुछ कर बैठेंगे या खुद भाग जाएंगे। यह बात मुझे शादी वाले दिन ही पता चली। नतीजतन मेरा सारा ध्यान चाचाजी पर था कि शुभ विवाह में कहीं अशुभ न हो जाए। दरवाजे पर बारात आए और लड़की का पिता भाग जाए या कुछ कर ले, इसकी भी जगहंसाई हो सकती थी। हम सभी इसी तरह लोगों को खिलाने-पिलाने और मेहमानों के स्वागत-सत्कार में लगे थे, तभी एक बोलेरो गाड़ी चाचाजी के दकवाजे पर आकर रूकी। एक खूबसूरत महिला उससे निकली और सभी को हाथ जोड़े सीधे घर में दाखिल हो गई। हाथ जोड़ते हुए वह सबकी ओर कनछपी निगाहों से देख रही थी, शायद सभी को पहचानने की कोशिश कर रही हो। उसके घर में प्रवेश करने के बाद एक हैंडसम सा 40 साल (हालांकि वह 40 का लग नहीं रहा था) का शख्स दो-तीन लोगों के साथ दरवाजे के सामने कुर्सी पर बैठ गया। समाज में इज्जत के तमाम ठेकेदार देखते रह गए या सन्न रह गए। दबी जुबान में भले ही सभी ने बहुत कुछ कहा हो, लेकिन किसी ने भी साफ तौर पर कुछ नहीं कहा। बाद में भी किसी ने कुछ नहीं कहा। उस वक्त जो लोग बड़े ताव में नजर आ रहे थे, इस वक्त उनक खून ठंडा पड़ा हुआ था। पहले सुना करता था कि ऐसा होने पर समाज के लोग उस परिवार को बहिष्कृत कर देते थे। शादी के कल होकर इस मसले पर थोड़ी-बहुत फुसफुसाहट सुनने को मिली। पर, सबकुछ शांत रहा।

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