हम भारतीय जनता बेवजह अपनी हालत पर रोते हैं। नेताओं पर लांछन लगाने की आदत हमारी गई नहीं। हमारा यह आरोप भी निराधार ही होता है कि नेताओं के पास बेइंतहा दौलत है। यह इल्जाम भी हमारा बेकार होता है कि नेता जनता के पैसे पर अय्याशी करते हैं। घोटाला वगैरह करके चंद दिनों में रोड पति से करोड़पति हो जाते हैं। इन सारे आरोपों और बातों का कोई तुक ही नहीं बनता। हमारे देश में नेता चाहे जितने घोटाले करें, अरबों रुपए जमा कर लें, स्विस बैंक भी काला धन के तौर पर क्यों न भर लें। आम आदमी की तरह वह विकास नहीं कर सकते। वह उससे हमेशा पीछे ही रहेंगे। लोकतंत्र इसी का तो नाम है। जब नेहरू भी लोकतंत्र के कमांडर बने तब भी कमोबश यही हालत थी, आज मनमोहन हैं तो भी वही। अक्सर लोगों को कहते सुनता हूं, जनता की वोटों से नेता मंत्री बन रात भर में अरबपति बन जाते हैं। उनके विकास की गति देश की विकास गति से भी कई गुणा अधिक होती है। मैं कहता हूं, ऐसा नहीं है। फिर लोग मुझसे सवाल करते हैं कि आपके पास क्या सबूत है? अब यही मैं मात खा जाता हूं। अक्सर मेरा सबूत चलता फिरता रहता है। उसे तुरंत पकड़ कर मैं नहीं दिखा सकता, यही मेरी कमजोरी है। लेकिन इस बार एक छोटी सी मिसाल लेकर आया हूं। झारखंड का किस्सा। देश के बड़े-बड़े नेताओं का किस्सा। किस्सा कुर्सी का। इससे मुझे पहली बार लगा कि मैं साबित कर पाउंगा कि नेता कैसे पीछे रह गए और आम आदमी आगे बढ़ गया। तो दोस्तों, जरा ध्यान से सुनिएगा। हुआ यह कि यहां लोकतंत्र के रास्ते पर आम आदमी तो आगे बढ़ गया, क्योंकि उसका ध्यान चलने पर ही है। मगर नेता पीछ रह गए। क्योंकि उनका ध्यान एक-दूसरे को लती मारकर गिराने पर ही रहा। यहां नेता गिरते हैं, फिर उठते हैं, अपनी चोट सहलाते हैं, एक-दूसरे पर थूकते हैं, फिर लात मारते हैं। तो हुआ न कि जो इंसान गिरगिर के चलेगा, वह तो नौ दिन में ढाई कोस ही चलेगा।
नेता जब मंच पर खड़ा होकर कहता है कि भाइयों, तुम्हें देश का निर्माण करना है तो लोग फुसफुसाते हैं- इसलिए कि तुमने देश का नाश कर दिया है। आजकल नेता छात्रों को राजनीति से जोड़ने पर ज्यादा ध्यान देते हैं। एकबार यूं ही छात्रों को संबोधित करते हुए नेताजी कह रहे थे, युवकों, तुम्हें चरित्रवान होना है, तो बीच से एक लड़का उठा और कहा-इसलिए कि तुम चरित्रहीन हो और सुधर नहीं सकते। इस तरह दोस्तों साबित हुआ कि नहीं कि हम काफी आगे निकल आ गए और वो पीछे रह गए। यदि नहीं तो एक और मिसाल लीजिए। नेता आज जब भाषण देने खड़ा होता है तो वही कहता है, जो पांच साल पहले कह चुका होता है। वहीं आश्वासन लोगों को देता है, जो पांच-दस साल पहले दे चुका होता है। देखा वह आगे बढ़ता ही नहीं। नई चीज सोच ही नहीं पाता, जबकि हम कहीं आगे निकल चुके होते हैं। उसकी बातों पर ध्यान ही नहीं देते।
नेता पर भारी जनता बेचारी
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hopeless
ReplyDeleteaam janta to in netaon ki bhagvaan hai
ReplyDeletelekin kaun sa neta inko maanta hai
http://sanjaykuamr.blogspot.com/