जिंदगी का मकसद क्या होना चाहिए? इस विषय पर बहुत कम सोचता हूं। शायद इसलिए कि जीवन के प्रति पैशन नहीं रहा। यह अजीब या बकवास भी लग सकता है। भला इतनी कम उम्र में जब सभी मौज-मस्ती में रहते हैं, मैं निराशावादी बातें कर रहा हूं। दरअसल इंसान कभी अपने हिसाब से अपनी जिंदगी तय नहीं करता। परिस्थितियां और हालात हमारी जिंदगी का रुख तय करते हैं। यह सच है, सभी को अपने जीवन में आसरे की तलाश होती है। उसे तलाश होती है उस शख्स की, जिसके कंधे पर सर रखकर वह रो सके। उससे अपने दिल की बात बेझिझक कह सके। हर वह बात जिसे हम अपने सबसे करीबी दोस्त, मम्मी-पापा से नहीं कह सकता। अपने भाई से नहीं कह सकता और न ही अपनी बहन से साथ साझा कर सकता है। फिर ऐसे में सवाल उठता है कि वह कौन हो, जिससे हम अपने दिल की बातें बगैर किसी शर्मिंदगी और संकोच के कह सकें। अक्सर हम सभी को इस कैरेक्टर में प्रेमिका का अक्स नजर आता है। पर, मेरा मतलब प्रेमिका से नहीं है। आजकल प्रेमी-प्रेमिका के किस्से इस तरह सुनने को मिलने लगे हैं, जैसे हरकोई लैला-मजनू और हीर-रांझा की औलाद नजर आता है। यह प्यार बस पैसे का खेल हो चुका है। अब तो सवाल यह भी उठने लगा है कि क्या हम एक ही समय में दो इंसानों से मोहब्बत कर सकते हैं। यानी एक की मोहब्बत हमारे लिए कम पड़ जाती है। लगता है, हम सदियों से प्यार के भूखे हैं। अब जबकि मौका मिला है तो एकबार में ही सदियों की भूख मिटा लेनी है। तो किसी को सुबह से दोपहर, दूसरे को दोपहर से शाम और तीसरे को शाम से रात तक प्यार करते हैं। यानी सुबह से लेकर शाम तक, शाम से लेकर रात, फिर रात से लेकर सुबह तक मुझे प्यार करो। यह मोहरा फिल्म का गाना है। गीतकार ने भी क्या खूब लिखा। यूं ही कवि को भविष्यदृष्टा नहीं कहा जाता है।
खैर, फिर भी मेरा सवाल अब भी बरकरार है कि वह कौन हो सकता है, जिसे हम अपना समझ सकें। उससे हर बात कह सकें। मुझे लगता है वह एक इंसान ही हो सकता है। हम उसे दोस्त, प्रेमी, प्रेमिका या कुछ और नाम दे देते हैं। नाम इसलिए कि हर किसी को उसे खोने का डर रहता है। एक रिश्ते का नाम देकर हम उससे अपना व्यक्तिगत संबंध कायम करते हैं। संबंध को नाम शायद इसलिए भी देते हैं कि हमारे अंदर असुरक्षा की भावना रहती है। उसे खोने का भय रहता है।
खैर, फिर भी मेरा सवाल अब भी बरकरार है कि वह कौन हो सकता है, जिसे हम अपना समझ सकें। उससे हर बात कह सकें। मुझे लगता है वह एक इंसान ही हो सकता है। हम उसे दोस्त, प्रेमी, प्रेमिका या कुछ और नाम दे देते हैं। नाम इसलिए कि हर किसी को उसे खोने का डर रहता है। एक रिश्ते का नाम देकर हम उससे अपना व्यक्तिगत संबंध कायम करते हैं। संबंध को नाम शायद इसलिए भी देते हैं कि हमारे अंदर असुरक्षा की भावना रहती है। उसे खोने का भय रहता है।
sahi kaha sambandh bahut bante hain ...par achche sambandh virle hi bante hain unhe sahejna padta hai...
ReplyDeleteदरअसल इंसान कभी अपने हिसाब से अपनी जिंदगी तय नहीं करता। परिस्थितियां और हालात हमारी जिंदगी का रुख तय करते हैं।
ReplyDeleteपरिस्थितियां और हालात के अनुसार ही हमारी सोंच होती है .. सपने बनते हैं !!
अपनी दिल की बात कहने के लिए कोई भी व्यक्तित्व हो सकता है, बस उसपर हमारा विश्वास होना चाहिए। हमें लगता हो कि हमारी बात को यह व्यक्ति समझ सकता है बस हम उसी से अपनी बात शेयर करते हैं। इसलिए यह हमारे माता-पिता, भाई-बहन या मित्र-प्रेमिका कोई भी हो सकते हैं। और इन सबसे भी अधिक स्वयं की इच्छा शक्ति ही काम आती है। कभी हमारी हिम्मत ही नहीं पड़ती कि हम अपनी बात दूसरों को बता सकें या हम स्वयं ही अपनी बात से डरते हैं। इसलिए ही कहते हैं कि जीवन में एक व्यक्ति ऐसा होना चाहिए जिससे हम अपने मन की बात कह सके।
ReplyDeleteसही चिंतन है ।
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