फीफा का फीवर यानी फुटबॉल का खुमार

फीफा विश्वकप का खुमार सर चढ़ कर बोल रहा है। जब से दक्षिण अफ्रीका में फुटबॉल का यह महाकुंभ शुरू हुआ है, खेल की कई प्रतियोगिताएं भी साथ चल रही हैं। पर सभी का ध्यान तो फुटबॉल के रोमांचक मुकाबलों पर ही है। चाहे भारत-श्रीलंका-पाकिस्तान-बांग्लादेश के बीच खेला जाने वाला एशिया कप ही क्यों न हो? या फिर टेनिस का विंबलडन। एशिया कप में भारत-पाकिस्तान के बीच मुकाबला अरसे बाद हुआ। भारत जीता भी। यहां तक कि फाइनल में श्रीलंका को पटखनी देकर एशिया कप का सरताज भी बना। पर उतना हो-हल्ला या जोश क्रिकेट का इबादतगाह करे जाने वाले भारत में भी नहीं देख गया। क्रिकेटप्रेमियों की छोड़िए, जब खुद क्रिकेटर और उससे जुड़े तमाम चेहरे भी फुटबॉल फीवर में डूबे हों तो समझा जा सकता है इसकी दीवानगी किस हद तक लोगों के सर चढ़कर बोलती है। आखिर यूं ही नहीं यह खेल दुनिया का सबसे अधिक देखा जाने वाला खेल है। फुटबॉल के खेल में इतनी तेजी है कि युवाओं को यह सबसे अधिक लुभाती है। तेजरफ्तार पसंद युवा ही नहीं, बल्कि वैसे तमाम लोग जो खेलों के रोमांच, खिलाड़ियों की कुशलता और भरपूर मनोरंजन के कायल हैं वह भी पीछे नहीं हैं। शुक्रवार को इसके लीग दौर के सारे मैच खत्म हो गए। अब तक कई उलटफेर हमदेख चुके हैं। शुरुआत में खिताब का प्रबल दावेदार माना जा रहा फ्रांस पहले ही दौर से तो बाहर हुआ ही, पिछली बार की चैंपियन टीम इटली भी स्लोवाकिया जैसी टीम से हारकर अपने घर पहुंच चुकी है। इन दोनों टीमों के शुरुआती दौर में बाहर होने की कोई उम्मीद भी नहीं कर रहा था, पर फुटबॉल जैसे खेल की यही खासियत है। यहां उम्मीदों से नहीं खेल से टीमें जीतती हैं। जरा सी चूक यानी एक खिलाड़ी का लचर प्रदर्शन भी टीम के बाहर होने वजह बन जाती है। फ्रांस की टीम थिएरे हेनरी और एडम- पिएरे जैसे धुरंधरों से लैस थी, फिर भी उन्हें बेआबरू होकर बाहर होना पड़ा। यही कुछ हाल डिफेंडिंग चैंपियन इटली का रहा। हालांकि इटली के लिए सबसे बुरा यह रहा कि उसके तेजतर्रार मिडफील्डर आंद्रेया पिरलो चोट की वजह से दो मैच नहीं खेल पाए। यहां वल्डर्कप में भारत तो कहीं नहीं है, लेकिन एशियाई टीमों में दक्षिण कोरिया और जापान बेहतरीन प्रदर्शन कर रही हैं। मेरी फेवरेट टीम तो ब्राजील है, लेकिन अर्जेंटीना के खेल से ज्यादा प्रभावित नजर आ रहा हूं। एक ऐसा वक्त था जब अर्जेंटीना फीफा वर्ल्डकप के क्वालिफाइंग दौर से बाहर होने वाली थी। इसके चलते उसके कोच डिएगो माराडोना की बेहद आलोचना भी हो रही थी। पर अब उसके खेल में जबरदस्त का सुधार देखने को मिल है। लियोनेल मेसी तो कहर ढा रहे हैं। भले ही वह गोल न कर पाए हों, लेकिन गोल के लिए जो मूव वह बनाते हैं, उसकी तारीफ जितनी की जाए उतनी कम है। उधर पुर्तगाल की टीम भी अच्छी खेल रही है, पर क्रिस्टियानो रोनाल्डो में वह बात नजर नहीं आ रही है। हालांकि, वह किसी भी टीम को अकेले मात देने के लिए काफी है। पर, ब्राजील के साथ आखिरी लीग मैंच इतनी बोरिंग रही कि क्या कहूं। शायद दोनों टीमें बेहतरीन खेली। लेकिन भाई हमें तो गोल यानी फैसला चाहिए। खैर प्रतियोगिता के नॉक आउट दौर में पहुंचने से मेरी यह तमन्ना भी पूरी हो जाएगी। वहां इस तरह से गोल रहित मैच तो नहीं देखने पड़ेंगे। ब्रिटिशों ने भी अच्छा खेल दिखाया है, वेन रूनी से सभी को काफी उम्मीदें होंगी। इसके बावजूद मैं ब्राजील का ही सपोर्टर हूं और रहूंगा। अभी तक काका को नहीं देख पाया। अब जबिक मैच मॉक आउट दौर में पहुंच चुका है तो फैबियानो से भी उम्मीद काफी बढ़ गई है।

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