मुझको डुबोया मेरे होने ने।

सबसे पहले आपसे एक सवाल, आपको क्या लगता है फिलहाल प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी की अंदरूनी हालात को लेकर आपकी क्या राय है ? मेरी यह पक्की सोच है कि हममें से ज़्यादातर सोच रहे होंगे यह बिल्कुल ही पतन की ओर है। जिस तरह से एक-एक कर इसके दिग्गज बाहर निकाल दिए गए या इसे छोड़ गए, सबने इसका बंटाधार किया। चाहे वह गोविंदाचार्य हों, उमा भारती, शंकर सिंह बघेला, कल्याण सिंह आदि और अब जसवंत सिंह इन सबने कहीं न कहीं पार्टी को काफी हद तक कमजोर किया है। इसमें को शक नहीं फिलहाल पार्टी के भीतर जितने आला नेता हैं उनका कोई जनाधार नहीं है। सबके सब एक से बढ़कर एक लफ्फाज़ हैं। चाहे वह अरूण जेटली हों या वेंकैया नायडू कोई भी आम जनता में अपनी पहचान नहीं रखते। और फिलहाल जिन राजनाथ के हाथों में पार्टी की कमान है, उनका भी कुछ अता-पता नहीं, यह एक दिशाहीन नेतृत्व द्वारा लोगों का ध्यान, भाजपा को चुनौती दे रही अगली समस्याओं से हटाने की कोशिश है। पार्टी के समक्ष चुनौती है- आडवाणी के बाद कौन? सत्ताधारी नेतृत्व का कांग्रेस का नेतृत्व किस युवा दिशा में जा रहा है सबको दिख रहा है। भाजपा में आडवाणी फ़िलहाल पद छोड़ने के मूड में नहीं हैं और सुषमा, जेटली, नरेंद्र मोदी, अनंत कुमार जैसे उनके समर्थकों की टोली को अभी और इंतज़ार करना पड़ेगा। हालांकि अब संकेत मिलने लगे हैं कि आडवाणी कुछ दिनों में राजनीति से संन्यास ले सकते हैं। फिर भी जिस तरह से संघ का डंडा बीजेपी पर चला है, इसे उसी का असर कहा जाएगा। लेकिन सवाल यह भी है कि इन जेटली, वेंकैया और नरेंद्र मोदी जैसे युवा नेताओं के हाथ में नेतृत्व आने के बाद भी मामला सुलटता नज़र नहीं आ रहा है, वजह साफ है इसके बाद यशवंत सिन्हा जिन्होंने मोर्चा खोलना शुरू कर दिया है और मुरली मनोहर जोशी जो अर्से से ताक में लगे हैं, मुमकिन है वो भी कुछ गुल खिला सकते हैं। इस तरह फिलहाल उस पर से संकट के बादल छंटते नज़र नहीं आ रहे हैं। हां, हो सकता है मामला कुछ दिनों के लिए पर्दे के पीछे चला जाए। लेकिन बग़ैर अमूल-चूल बदलाव के पार्टी में नया जोश भर पाना नामुमकिन नहीं तो मुश्किल तो ज़रूर है। दरअसल पिछले लगातार विधानसभा चुनाव जीतने के बाद इसके नेताओं में सत्ता लोलुपता कुछ ज़्यादा ही बढ़ गई थी, लेकिन लोकसभा चुनाव में लगातार दूसरी हार ने इनके सब्र के बांध तोड़ दिया और इनके मन का गुबार बाढ़ की तबाही की तरह पार्टी को डुबाने लगी। दरअसल बीजेपी को तभी चेत जाना चाहिए, जब पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत ने सवाल उठाने शुरू कर दिए थे, लेकिन यह मदमस्त हाथी की तरह झुमती रही, फिर नतीजा आपके सामने है.

1 comment:

  1. बिल्कुल सही कहा आपने .........सुन्दर

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