मेरी छोटी सी तमन्ना
लीक से हटकर सोचना क्या होता है? शायद आम लोग जो सोचते हैं, उससे अलग सोच रखना। या बदलते जमाने के हिसाब से सोचना। यह भी कह सकते हैं कि ऐसी सोच जो दूसरों के पास न हो। अलग-अलग लोगों के लिए यह अलग-अलग बात हो सकती है। लेकिन मैं इनमें किसी पर भी सही नहीं ठहरता हूं। अलग सोचना क्या होता है, यही मुझे समझ में नहीं आया। इतना मैं जानता हूं कि कुछ ऐसा सोचें जो दूसरों को हैरत में डाल दे कि वाह क्या आइडिया है। लेकिन मैं कभी सोच ही नहीं पाया। यानी जमाने के हिसाब से आगे कभी बढ़ ही नहीं पाया। लोग दस कदम आगे बढ़ाते हैं तो मैं बस एक। मुझे हर काम परफेक्शन से करना पसंद है, पर कभी हो नहीं पाता। इसका समाधान मैं कैसे नकालूं। कैसे खुद को समझाऊं। मुझे मालूम है इसके लिए मेहनत की जरूरत है। अथक और लगातार मेहनत करने की जरूरत है। मैं कोशिश करता हूं, पर मेहनत कर नहीं पाता हूं। हमेशा ज्ञान बघारता रहता हूं। मैंने ये किया, वो किया। पर कभी कॉन्फिडेंस से कह नहीं पाया कि ये मैंने किया है...क्रॉस क्वेश्चन करने पर घबरा जाता हूं। अपनी बात कभी डिफेंड ही नहीं कर पाया। सोचता हूं खूब पढ़ू, खुद को साबित करूं, सबसे बेस्ट बनकर दिखाऊं। पर कैसे? केवल सोचने से तो होता नहीं। करना पड़ता है, नहीं तो सब किया धरा रह जाता है। पढ़ना चाहता हूं, पर समझ में नहीं आता क्या पढ़ूं। पढ़ने बैठता भी हूं तो दिमाग इन बातों में घूमने लगता है कि बहुत कुछ पढ़ना है, इसी में सर भारी होने लगता है, दिमाग ख्यालों की दुनिया में गोते लगाने लगता है और या तो नींद की वजह से या तनाव की वजह से किताबें हाथों से दूर हो जाती हैं। इस तरह एक दिन बीत जाता है। दूसरा दिन बीतता है। फिर यही ख्याल आता है कि खूब पढ़ूंगा। सबसे बेस्ट बनूंगा। मेहनत करूंगा। पर एकबार फिर वही किस्सा होता है। नींद आती है या ख्यालों की दुनिया में गोते लगाने के बाद कुछ भी हाथ नहीं लगता है। इस तरह साल के बाद साल बीत जाता है। मेरे बेस्ट बनने की तमन्ना धरी की धरी रह जाती है।
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अच्छी पुस्तकें पढ़िये । इतिहास और दर्शन । मार्क्स ,जुंग , एडलर , चोम्स्की , काफ्का । बुद्ध का दर्शन , चार्वाक । यह तो होगा ही कि सब कुछ जल्दी जल्दी पढ़ लेने के चक्कर मे कुछ न पढ़ पायें या हल्की-फुल्की किताब पढ़कर ही पढ़ लिया के संतोष् से भर जाये । जल्दी न करें यह जीवन भर चलता है । बेस्ट बनने का चक्कर छोड़े । यहाँ हर कोई अपने आप को बेस्ट समझता है । जैक ऑफ आल बनने के बजाय किसी विधा के मास्टर बने ।
ReplyDeleteशरद भाई सब कुछ कह गये.
ReplyDeleteअपने अन्तरदुअन्द का अच्छा वर्नन किया है। बहुदा लोगों के साथ ऐसा होता है। बाकी शरद जी जैसे दिग्गज हैं उनकी सुनिये। शुभकामनायें
ReplyDeleteapne blog ko kai baar padhiye usme kya galtiyan hain dhundhiye... agar itna sa blog perfectly nahin likh sakte to itna bada 'syapa kyun pa' rahe hain...
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा...यदि एक छोटे से ब्लॉग को लिखते समय यदि कोई कंसंट्रेट नहीं कर पाए तो और भला क्या करेगा.....पर मैं कोशिश करूंगा..............
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