यह बेहद ही दिलचस्प बात है कि सौरव गांगुली को सबसे सफल कप्तान माना जाता है और उनकी कप्तानी में भारत ने जिन 21 मैचों में जीत हासिल की उनमें टीम के कुल रनों में से 23 फीसदी अकेले द्रविड़ ने बनाए थे. इस दौरान द्रविड़ का कुल औसत सचिन से भी आगे निकल गया था और गेंदबाजों के लिए उनका विकेट सबसे कीमती हुआ करता था.
कुछ साल पहले द्रविड़ ने कहा था कि ऑफ साइड ड्राइव के मामले में भगवान के बाद तो सौरव गांगुली ही हैं. गांगुली ने इसके बदले में कुछ नहीं कहा. लेकिन ज़रा सोचिए यदि वह कुछ कहते तो शायद यही कि ऑन साइड में द्रविड़ की होड़ भगवान के साथ है.
द्रविड़ के साथ अक्सर ऐसा रहा कि पहले उन्हें खारिज कर दिया गया और बाद में उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से हर आलोचक को खामोश कर दिया. टेस्ट क्रिकेट द्रविड़ के मिजाज से मेल खाता है. ऐसे में यह कल्पना आसान है कि द्रविड़ का असली रूप खेल के इस संस्करण में ही दिख सकता है. लेकिन एकदिवसीय क्रिकेट और अब युवाओं का कहे जाने वाले खेल आईपीएल में उनका बल्ला ख़ूब बोल रहा है. द्रविड़ आज अपनी आईपीएल टीम बेंगलुरू की ओर से सबसे ज़्यादा रने बनाने वाले खिलाड़ी हैं.
करिअर के शुरुआती और आखिरी दोनों दौर में द्रविड़ जैसे खिलाड़ी के साथ जिस तरह बर्ताव किया गया यह देखकर खराब लगता है. इंग्लैंड के दौरे पर उनके लिए जो गड्ढ़ा खोदा गया था उससे बाहर निकलने में द्रविड़ को दो साल लग गए. वक्त बुरा हो तो साथी भी साथ छोड़ देते हैं. इस सीरिज के बाद कुछ जूनियर खिलाड़ियों ने भी उनकी आलोचना की थी. यहां तक कि उनकी फील्डिंग भी खराब हो गई. 14 पारियों में वे कोई शतक नहीं बना सके. लगातार यह कहा जाने लगा कि उनका वक्त खत्म हो गया है. दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड के खिलाफ उनके शतक आलोचकों को शांत करने में नाकामयाब रहे. मगर इसके बाद न्यूजीलैंड सीरिज में भी जब उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया तो सब खामोश हो गए. फिर अहमदाबाद और कानपुर की पारियों में उसी पुराने द्रविड़ की झलक दिखी. अभी हाल में बांग्लादेश के खिलाफ उसी द्रविड़ को एकबार फिर देखने को मिला. चोटिल होकर मैच से बाहर होने के पहले टेस्ट करियर का 29वां शतक ठोक अपनी सफलता की तरकश में एक और तीर शामिल कर चुके थे. इतनी सफलता हासिल करने के बाद भी यदि द्रविड़ वह मुकाम हासिल नहीं कर पाए, जितनी सफलता उनके समकालीन सचिन और गांगुली ने की तो बस यही कही जा सकता है कि क्रिकेट के इतिहास में द्रविड़ जैसे सितारा ने ग़लत वक्त पर अपनी चमक बिखेरने की कोशिश की. लेकिन वह वक्त भी आएगा जब क्रिकेट के इतिहासकार द्रविड़ की एक अलग ही गाथा लिखेंगे.
पानी पानी का फर्क है खेलने बाले में, देखने बाले में और तुलना करने बाले में......
ReplyDelete........आज शहीदों को शत् शत् नमन......
आज सुबह से ही मैं पानी पानी हूँ...मुझे इस विशेष दिन की याद ही नहीं थी........
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विश्व जल दिवस....नंगा नहायेगा क्या...और निचोड़ेगा क्या ?
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_22.html
मिज़ाज़ मिज़ाज़ की बात है
ReplyDeleteसचिन सचिन है तो द्रविड द्रविड