अच्छाई के लिए यह जरूरी है कि हम दूसरों की बात सुनने में तत्परता दिखाएं। जब बोलने की हमारी बारी आए या फिर कोई गुस्से की बात हो तो हमें अधिक उतावलापन नहीं दिखाना चाहिए। गुस्सा और बदला लेने की प्रवृत्ति कभी भी नेकिनयति को बढ़ावा नहीं दे सकती है। सबसे बड़ी बात यह हमें सच्चाई के प्रति अंधा बना देती है। और, आंख के बदले आंख वाले बदले की भावना से तो पूरी दुनिया ही अंधी हो जाएगी।
कई लोग यह कहते फिरते हैं कि इस खूबसूरत दुनिया में दर्द और दुख के लिए कोई जगह नहीं है। तो फिर ऐसा क्यों है कि अधिकांश लोग दुखी होते हैं? यदि देखा जाए तो दुख की एक वजह मानवीय संबंध है। इसलिए शायद यदि इन समस्याओं या दुख के लिए किसी को कसूरवार ठहराया जा सकता है तो वह हम ही हैं, न कि प्रकृति या भगवान। परिवार में आपसी मनमुटाव, पड़ोसियों से तनातनी, दोस्तों से संघर्ष और सहयोगियों से खींचतान। यहां तक कि सबसे बेहतर इंसान भी रिश्तों को तार-तार करने में न चाह कर भी गलतियां कर बैठता है। अकेलेपन में जीना कोई विकल्प नहीं है। इसकी वजह यह है कि हम सभी एक-दूसरे पर निर्भर हैं और हमें एक-दूसरे की जरूरत है। सारी समस्याओं की जड़ मानवीय प्रकृति में निहित है। पुरूषों के भीतर वह क्या है, जिससे उन्हें कलंकित होना पड़ता है? जब हमारे दिल के अंदर और दिमाग से बाहर बुरी सोच निरंतर बाहर आती है, तो इन सभी से हमारा चरित्र प्रभावित होता है। इन सभी बातों का लोगों और घटनाओं पर असर पड़ता है। किसी घटना या परिस्थिति सो कोई प्रभावित नहीं होता है, बल्कि हमारी प्रतिक्रिया से लोगों पर व्यापक असर पड़ता है। और, अपनी इन गलतियों को कबूलना सचमुच में काबिलेतारीफ है। इन बुरी प्रवृत्तियों से मुक्ति के लिए हमें ईश्वर के प्रेम की जरूरत है। ईश्वरीय-आत्मा एक इंसान में मोहब्बत पैदा करने का काम करती है। वह हमें कभी गलत रास्तों पर नहीं ले जा सकती है। यह मोहब्बत या प्यार उनमुक्त और बना शर्तों वाला होता है। अब जबकि हम बात अच्छे संबंधों की कर रहे हैं तो अच्छे संबंधों के लिए आवश्यक है कि हमलोगों को साथ अच्छे से पेश आएं। यदि हम दूसरों से मान-सम्मान चाहते हैं तो हमें भी उन्हें बदले में यही देना चाहिए। इसके अलावा हमें उन सभी को माफ कर देना चाहिए, जिन्होंने कभी हमारे साथ बुरा किया है। लोगों को माफ करने प्रवृत्ति संबंधों को बरकरार रखने के लिए बेहद जरूरी है, क्योंकि स्वभाव से हम सभी अपूर्ण हैं।
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