मेट्रो में मोहब्बत का सफर
घर की चाहरदीवारी में पुरूषों के फैसलों को मानने को मजबूर रहने वाली महिलाएं उन्हें उनके फैसलों को चुनौती दे रही थीं। उन्हें ललकार रही थी कि अब तुम्हारा दौर गया, अपनी बकवास बंद करो और यदि तुम कुछ नहीं कर सकते, उनका सम्मान नहीं कर सकते तो उनके अधिकार पर भी हाथ साफ नहीं कर सकते। इस तरह दोनों महिलाओं की खरी-खोटी सुनकर उन सज्जन की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। यह वाकया देखकर मेट्रों के उस बोगी में सवार सारे लोग ऐसे हंसे मानो राजू श्रीवास्तव ने कोई चुटकुला सुनाया हो। जनाब लुटेपिटे से नजर आने लगे और अपनी जगहंसाई के बाद जुबान को अपनी हलक के नीचे ऐसे छुपाया, मानो सदियों से मौन व्रत रखा हो। इसी दौरान मेरी नजर उस लड़की पर पड़ी, जो शुरू से अभी तक वहीं बैठी थी, जहां पहले थी, जिस हालत में पहले थी, अभी भी उसकी हालत वैसी ही थी। हां, चेहरे की रौनक कहीं से लौट आई थी। ठीक उसी तरह जैसे अशोक वाटिका में हनुमान रामचंद्रजी का संदेश लेकर आए थे। पता नहीं उसे कहां उतरना था? इसी बीच वह सुदंर बाला अचानक अपने पर्स से मोबाइल निकाल कर किसी बातें करने लगी। जब उसने बात करने के लिए मोबाइल निकाला तभी मुझे पता चल पाया कि उसके पास एक पर्स भी है। खैर, शायद उसकी जिससे मुलाकात मुकर्रर हुई थी, उसी का फोन था। बात करने के दौरान, लोगों देखती हुई थोड़ी मुस्कराती और थोड़ी शर्माती हुई उसने काफी समय तक अपनी बात जारी रखी। एक तरह से प्रेमकांड का यह दौर काफी लंबे समय तक फोन पर शुरू हो चुका था...पर ज्यादा समय तक उसका गवाह बने रहने की खुशनसीबी मुझे न मिल सकी...कारण मेरे अफिस का स्टेशन आ चुका था...मुझे न चाहते हुए भी इस प्रेम प्रसंग का अधूरा किरदार बनना पड़ा। इस बात का मलाल मुझे हमेशा रहेगा। साथियों मैं आपसे सब से भी, माफी चाहूंगा...
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चंदन, कैसे हो? तुम्हारा कुछ पता ही नहीं चलता। ए तो भला हो ब्लॉग का, जो तुम अचानक दिख गये। तुम्हारा चुप रहना और काम सीखने के लिए बेचैन रहना मुझे अच्छा लगा। आशा है, भविष्य में तुम अच्छा काम करोगे। वैसे आज ही मैने भी एक पोस्ट 'कठफोड़वा' पर डाली है। हो सके तो पढ़ना और अपना कमेंट भी देना। ब्लॉग का पता है-www.kathphodwa.blogspot.com .......अजय यादव
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्द चित्र है यह । इस पर एक कविता भी हो सकती है ।
ReplyDeletebilkul ajaya bhaiya...aapne pehchan liya yahi bahut badi baat hai mere liye
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