पाश एक पंजाबी कवि हैं। इनकी एक बेहतरीन रचना याद आ रही है। दरअसल यह लागू तो हर क्षेत्र और हर मायनों में हो सकती है। पर यहां मैं खासकर इसका इस्तेमाल मीडिया के संदर्भ में करना चाहता हूं। मीडिया वालों की जिंदगी भी कुछ इसी तरह की हो गई, जैसा कि अपनी इस कविता में पाश ने कहा है,
सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना,
न होना तड़प का, सबकुछ सहन कर जाना,
घर से निकलना काम पर और काम से लौट के घर आना,
सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना।
दरअसल आजकल जिस तरह मीडिया के मायने बदलें हैं, उसी तरह मीडियाकर्मी का चेहरा, उसकी सोच और विचारधारा भी बदली है।
BHAI POORI KAVITA LIKH DETE YAAD KARNA AASAN HO JATA ......HA HA HA
ReplyDelete