तब मास्क न पहनना अपराध था, और यूं 5 करोड़ जान लेने वाले स्पेनिश फ्लू से जीती जंग

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कोरोना वायरस महामारी की वजह से पांच अप्रैल रात 1 बजे तक 64 हजार 51 लोगों की मौत हो चुकी है। 11 लाख 87 हजार 846 लोग इससे बीमार हैं। सबसे ज्यादा मौतें इटली में 15,362 हुई हैं। वहीं, अमेरिका में अकेले तीन लाख से ज्यादा लोग इससे संक्रमित हो चुके हैं। जबकि इस वायरस ने जहां जन्म लिया यानी चीन इसे लगभग पूरी तर नियंत्रित करने में सफल दिख रहा है। हालांकि, हम बात इस कोरोना वायरस से जंग और उसके तौर तरीके पर करेंगे। आखिर हम कैसे एक वायरस से जंग अपनी ही लापरवाही की वजह से हारते चले जा रहे हैं। इसमें सबसे बड़ी बात आती है, खुद को सुरक्षित रखना। खुद को सुरक्षित रखने में एक तरीका है मास्क पहनना। इसे लेकर अमेरिका में कई तरह के विवाद चल रहे हैं। राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप शुरू से मास्क पहनने के आदेश देने के खिलाफ रहे हैं, लेकिन अब उन्होंने भी हार मान ली है। हालांकि, उन्होंने खुद मास्क न पहनने का फैसला किया है।
अमेरिका की सिएटल पुलिस 1918 में मास्क पहनी नजर आई...तस्वीरः सीएनएन
हमारी कहानी यह भी नहीं है। हमारी बात यह है कि मौजूदा कोरोना वायरस से भी भयानक एक महामारी आई थी स्पेनिश फ्लू। वह भी 1918 में। तब पहला विश्वयुद्ध खत्म हुआ ही था या खत्म होने की कगार पर था। वैसे स्पेनिश फ्लू का मतलब यह नहीं है कि इसकी उत्पत्ति स्पेन में हुई थी। इसका पहला केस अमेरिका में आया। लेकिन, अमेरिका, जर्मनी, इंग्लैंड जैसे देशों ने प्रथम विश्वयुद्ध की वजह से कई खबरों या कहें मीडिया पर कई तरह की पाबंदियां लगाई हुई थीं। लेकिन स्पेन में मीडिया न्यूट्र्ल था। वहां इसकी रिपोर्टिंग हुई औऱ आगे चलकर इसी वजह से इसका नाम स्पेनिश फ्लू हुआ। दुनिया की एक तिहाई आबादी इसकी चपेट में आई थी। तकरीबन 5 करोड़ से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। ख़ैर हमारी कहानी यह भी नहीं है।
हम लौटते हैं अपनी मूल बात पर कि कैसे कोरोना महामारी में लोगों ने लापरवाही बरती। लापरवाही यह कि मास्क न पहनना। स्पेनिश फ्लू जब फैला, तब भी दुनियाभर में लोग मास्क पहने नजर आए थे। इसी मास्क ने दुनिया के लोगों को संक्रमण से बचाया था। कहा तो यह भी गया कि अमेरिका में तब कुछ हिस्सों में मास्क न पहनना गैरकानूनी था। यानी अगर आप मास्क नहीं पहनते हैं, तो समझिए आप अपराध कर रहे थे। अगर लेकिन इस बार आख़िर क्या बदला सा दिख रहा है। तब मास्क न पहनना अपराध था, और यूं 5 करोड़ जान लेने वाले स्पेनिश फ्लू से जीती जंग। तब और अब में फिर अंतर क्या है?
तो यह था अंतर। जब कोरोनो वायरस महामारी ने एशिया को चपेट में लेना शुरू किया, तो पूरे महाद्वीप में लोग मास्क पहनने लगे। ताइवान और फिलीपींस जैसे कुछ देशों में तो इसे अनिवार्य कर दिया गया। लेकिन, पश्चिमी देशों में इसे लेकर एक लापरवाही-सी रही। इंग्लैंड के मुख्य चिकित्सा अधिकारी क्रिस व्हिट्टी ने तो दावा तक किया कि मास्क पहनना कोई जरूरी नहीं है। लेकिन आप जानते हैं स्पेनिश फ्लू और कोरोना वायरस महामारी में यहीं एक बात अहम हो जाती है। स्पेनिश नियंत्रित होने के बाद अक्टूबर 1918 में अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में महामारी फिर तेजी से फैलने लगी। अस्पतालों में संक्रमितों की संख्या में वृद्धि होने लगी। इसके बाद 24 अक्टूबर, 1918 को सैन फ्रांसिस्को ने मास्क अध्यादेश पारित किया। यह पहली बार था, जब सार्वजनिक रूप से मास्क पहनना अमेरिकी धरती पर अनिवार्य किया गया। सैन फ्रांसिस्को में सार्वजनिक रूप से मास्क अनिवार्य करने के बाद जागरूकता अभियान शुरू हुआ। लोगों को बताया गया कि "मास्क पहनें और अपना जीवन बचाएं! एक मास्क स्पेनिश फ्लू से बचाव की 99% गारंटी है।" मास्क पहनने के बारे में गाने तक लिखे गए। यहां तक कि बिना मास्क के बाहर पाए जाने वाले को जुर्माना या जेल भी हो सकती थी। (आगे जारी...)

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