महाराष्ट्र के पालघर में दो
साधुओं समेत तीन लोगों की भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी। इस मॉब लिंचिंग में तीनों
को जान गंवानी पड़ी। किसी ने उनके चोर होने की अफवाह उड़ा दी। इसके बाद दर्जनों
लोगों की भीड़ उन पर टूट पड़ी। यह पूरी घटना वहां मौजूद कुछ पुलिसकर्मियों के
सामने हुई। 110 लोगों को गिरफ्तार किया
गया है। लापरवाही के आरोप में महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार ने पुलिस के दो अधिकारियों
को सस्पेंड किया है।
Photo: Express |
एक अफवाह ने तीन बेकसूरों
की जान ले ली। अब लाख कोशिश कर ली जाए... पुलिस को सस्पेंड करो, दोषियों को सजा दो,
उन तीनों की जिंदगी तो वापस नहीं आ सकती न। इसलिए पालघर की लिंचिग घटना बेहद
शर्मनाक है! लेकिन, आज जिस तरह कुछ वर्ग विशेष के चंद लोग इस घटना से तमतमाए हुए
हैं, अगर पहले ही हम इस तरह की
तमाम हिंसा पर सरकार से सवाल करते और जिम्मेदार ठहराते तो ऐसी नृशंस हत्या करने से
पहले गुनहगार 100 बार सोचता... अगर मॉब लिंचिंग के आरोपियों को मोदी सरकार का कोई
मंत्री फूल-मालाओं से स्वागत नहीं करता, तो ऐसी हिम्मत किसी क न होती। अगर मॉब
लिंचिंग करने वालों के पक्ष में नारे नहीं लगाए जाते, तो ऐसी हिम्मत कोई नहीं कर
पाता। और, आज दोनों साधु हमारे सामने जीवित होते। लेकिन नहीं, जब तक सहूलियत के
हिसाब से मॉब लिंचिंग एक मजहब विशेष के लोगों के साथ होती रही, लोग चुप रहे। मरने
वालों को चोर-उचक्का कहने लगे और मारने वालों का यशोगान करते रहे। ये भूल गए कि यह
अफवाह एक भस्मासुर है और इस आग में एक दिन खुद भी भस्म होना होगा। फिर भी कुछ लोग
सुधर नहीं रहे और पालघर में मॉब लिंचिंग की घटना में सांप्रदायिक ऐंगल निकालने में
लगे हैं... पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर सौ से ज़्यादा लोगों को हिरासत में
लिया है। लेकिन कुछ निहायत घटिया लोग इसे सांप्रदायिकता का रंग देने में जुटे हैं।
जब मैंने कल इस पर सवाल
उठाया, तो तकरीबन 15 साल से ‘पत्रकार’ साहब ने उल्टा सवाल कर दिया। उनका कहना था कि इस पालघर लिंचिंग की घटना
पर कोई कुछ नहीं बोल रहा है, ‘ना मीडिया गैंग, ना जमाती, ना जेहादी, ना वाम, ना हाथ, ना सेलेब्स, ना लिबरटार्ड... देश बोल
रहा है।‘ देश से उनका तात्पर्य
था ट्विटर। जब सवाल किया कि क्या 1.3 अरब की आबादी ट्विटर पर है। ट्विटर पर कैसे
चंद ट्रोल ट्रेंड कराने लगते हैं किसी विषय को और क्या ट्विटर ही देश है, तो मुझसे सवाल पूछा गया
कि ‘चोर तबरेज के लिए ट्वीट करने वाले आम आदमी थे, साधु मारा गया सब ट्रोल ही ट्वीट कर रहे हैं।’ मतलब उनकी
नज़रों में 24 साल का तबरेज अंसारी, जिसकी झारखंड में भाजपा की सरकार के दौरान मॉब
लिंचिंग की गई, वह चोर था।
दरअसल, सारी समस्या की
जड़ यही है। जब तक हम सहूलियत के हिसाब से घटनाओं को देखेंगे, पालघर जैसी मॉब
लिंचिंग से बेकसूरों के जान गंवाने की वारदात होती रहेगी। अगर हमें इसे रोकना है,
तो सारे मामले को एक चश्मे से देखना ही होगा।
सबसे पहले हमें
सांप्रदायिकता के चश्मे को उतारना होगा। वरना जब अगस्त 2019 में पटना में 20 से
अधिक अफवाह बच्चा चोरी की उड़ाई जाती है और भीड़ लाठी-डंडों से बेकसूबर दूसरे मजहब
के लोगों की पिटाई कर हत्या कर देती है, तब हम कहां होते हैं?
सितंबर 2019 में जब भीड़
बच्चा चोरी की अफवाह में मानसिक रूप से कमजोर और दिव्यांग मुस्लिम समुदाय के लड़के
को पीटकर अधमरा कर देती है, तो हमारी आवाज़ कहां होती है? जब यूपी के ही संभल में ऐसे ही मामले में भीड़ मॉब लिंचिंग
में हत्या कर देती है, तब भी खामोशी की चादर बिछी रहती है।
पालघर में जिस बेरहमी से
दोनों साधुओंपर भीड़ हमला कर रही है, वह बीभत्स है। पुलिस एक घर से उसे हाथ पकड़कर
लाती दिख रही है। फिर अचानक भीड़ साधु को मारना शुरू कर देती है। पुलिस वाले खुद
को बचाते दिख रहे हैं। जब पुलिस ऐसे भीड़ वाले मामले में खुद फंसती है, तो पहले
अपनी जान बचाती नजर आती है। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर हालात बेकाबू कहां से हुए।
किन वजहों से इन वारदात को अंजाम दिया गया। हमें इस तरह की भीड़ की मानसिकता के
तहत तक जाना होगा। वरना मर्ज को जाने बिना इलाज नामुमकिन है।
यही सही है कि इस तरह की
वारदात के साथ कुछ तथाकथित (वामपंथियों और छद्म सेकुलरों) बुद्धिजीवियों का दोहरा
चेहरा सामने आने लगता है। हालांकि, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह देश इन छद्म
बुद्धिजीवियों से बना है। हमें उनसे भी पार पाना है और इस तरह की मॉबलिंचिंग की
मानसिकता और इसे बढ़ावा देने वाली सोच से भी। यह दोनों तरफ के लोग हैं।
अब जैसा कि पहले ही कहा
कि इसमें भी कुछ निहायत ही घटिया और संकीर्ण सोच वाले लोग सांप्रदायिकता का एंगल
तलाश रहे हैं।
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