हिंदुस्तान किससे लड़ रहा है? कोरोना या फिर मुसलमानों से...

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कोरोना धर्म देखकर नहीं होता। लेकिन धर्म देखकर आरोप लगाया जा रहा है कि किसी धर्म की वजह से कोरोना फैल रहा है। ख़ैर 'कोरोना धर्म देखकर नहीं होता इसलिए सबको एकजुट रहकर कोरोना से लड़ाई लड़नी है।' यह बिलकुल हालिया बयान है दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की। जबकि दिल्ली में ही धर्म देखकर कोरोना फैलाने के लिए मुसलमानों को जिम्मेदार बताने की कई घटनाएं हुई हैं। मैं जहां रहता हूं, वहां का आंखों देखा हाल है। एक बीट कॉन्स्टेबल को कुछ लोग कहते हैं कि सब्जी बेचने वाले मुसलमानों को इस मोहल्ले में आने से रोकें। वह कॉन्स्टेबल मना कर देता है और कहता है कि मैं किसी को मुसलमान-हिंदू देखकर नहीं रोकूंगा। हालांकि, वह इससे रोकता भी नहीं है और कहता है कि अगर आपको हिंदू-मुसलमान देखकर रोकना है, तो रोको।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कह चुके हैं कि कोरोना से इस जंग को हमें मिलकर लड़ना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया, कोरोना वायरस नस्ल, धर्म या पंथ के आधार पर भेदभाव नहीं करता है। इसलिए इसके खिलाफ हमारी लड़ाई में एकता और भाईचारे को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। हम सभी इस लड़ाई में एकजुट हैं। हालांकि, उनकी यह प्रतिक्रिया ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन के मानवाधिकार संगठन द्वारा कोरोना वायरस के संदर्भ में मुसलमानों को निशाना बनाए जाने और देश में चलाए जा रहे इस्लामोफोबिक कैंपेन की निंदा करने के घंटों बाद आई। दरअसल, भारत में मुसलमान कोरोना वायरस संकट का खामियाजा भुगत रहे हैं। क्योंकि हर बात पर हर दिन यहां न्यूज चैनलों से लेकर सोशल मीडिया और लोगों के पर्सनल वॉट्सऐप ग्रुप में देश में कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को लेकर मुसलमानों को हो दोषी ठहराया जा रहा है। यह दिल्ली के निजामुद्दीन में तबलीगी जमात के बाद 100 फीसदी पढ़ गया है। एक पार्टी विशेष के नेता और पार्टी से जुड़े संगठन कोरोना आतंकवादतक जैसे शब्दों का प्रयोग करने लगे हैं। दुनिया के दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले देश यानी भारत में इस कोरोना वायरस संकट के बीच अल्पसंख्यकों के प्रति हिंसा, व्यापारिक बहिष्कार और नफरत फैलाने वाले बयानों में तेजी से वृद्धि आई है।
भारत में कोरोना वायरस के अभी तक 26 हजार 496 मामलों की पुष्टि हो चुकी है। 824 लोगों की मौत हो चुकी है। अगर तबलीगी जमात के कोरोना मामलों को देखें, तो भारत में हर पांच से एक केस का ताल्लुक इसी से है। फिर बाकी चार का किससे है? मार्च में तीन दिनों धार्मिक जलसे में तकरीबन 8 हजार लोग इकट्ठा हुए थे। उसके पहले इस देश में कोरोना वायरस अपना रंग दिखाने लगा था। लेकिन मार्च की इस घटना के बाद देश में क्या चल रहा है? कोरोना का इस्लामीकरण। बड़ी सभाओं या देश में लॉकडाउन से पहले तबलीगी जमात ने दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में बड़ी धार्मिक सभा का आयोजन किया था। जमात के प्रवक्ता मुजीब-उर-रहमान का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 24 मार्च को 21 दिनों का लॉकडाउन लागू किए जाने के बाद वहां फंसे लोगों को रहने की जगह मुहैया कराई गई।
फिर छापे मारी हुई। कई विदेशी भी वहां से निकले। संक्रमण का खतरा बढ़ता चला गया। लोगों ने खुद को छिपाना भी शुरू कर दिया। देश में एक तरफ जहां कोरोना मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टरों पर हमला हो रहा है। इलाज करने वाले डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को उनके पड़ोसी ही उनके खुद के घरों में रहने पर हंगामा मचा रहे हैं। एक डॉक्टर की मौत पर तो लोगों ने उनके दफनाने को लेकर बवाल मचा दिया। जब इस तरह का सोशल स्टिग्मा चल रहा हो, तो भला कौन खुद की पहचान जाहिर करेगा। हालांकि, जरूरत इस बात की है कि इसे लेकर जागरूकता अभियान चलाया जाए, लेकिन जागरूकता अभियान की जगह मुसलमानों के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है।
मुसलमानों को निशाना बनाकर झूठी खबरें/फेक न्यूज़ फैलाना शुरू कर दिया गया। कथित रूप से अधिकारियों पर उनके थूकने की खबरें फैलाई गई। बाद में यह झूठ साबित हुआ। सरकार की तरफ से भी कैसे इस बहस को आगे बढ़ाया गया, उसकी मिसाल भी देख लीजिए। भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस धार्मिक कार्यक्रम का नाम लिया। ब्रिटिश अखबार की वेबसाइट मेल ऑनलाइन के मुताबिक, उन्होंने 5 अप्रैल को कहा कि वायरस के मामलों की संख्या के 4.1 दिनों में दोगुनी हो रही थी। यह रफ्तार 7.4 दिनों की होती, 'अगर तबलीगी जमात की वजह से कोरोना के अतिरिक्त मामले सामने नहीं आते।
उसी दिन दिलशाद मोहम्मद ने अपनी जान ले ली। हिमाचल प्रदेश के रहने वाले दिलशाद ने जमात के दो लोगों को अपनी बाइक पर लिफ्ट दी थी। और जमात को लेकर पूरे देश में दहशत और कलंक का माहौल इतना फैला दिया गया कि इससे उसने अपनी जान ले ली। वहां के एसपी ने भी इस आत्महत्या के मामले को स्टिग्मा यानी कोरोना को लेकर सामाजिक कलंक को जिम्मेदार ठहराया।
राजस्थान में एक गर्भवती मुस्लिम महिला को उसके धर्म के कारण सरकार अस्पताल में भर्ती करने से मना कर दिया गया। इसकी वजह से महिला के पेट में पल रहे सात महीने के बच्चे की मौत हो गई।
उत्तराखंड में कुछ हिंदू युवाओं ने फल बेचने वाले मुसलमान शख्स को सामान बेचने से रोक दिया। हालिया मामला यह है कि झारखंड के जमशेदपुर के कदमा में एक फल की दुकान पर लिखा था, विश्व हिंदू परिषद द्वारा अनुमोदित दुकान। मुसलमानों की दुकानों का बहिष्कार और इस तरह की दुकानों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
दिल्ली से सटे गुड़गांव के एक मस्जिद में गोलीबारी की गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 अप्रैल को 15 मिनट के लिए अपनी स्वेच्छा से लोगों को घरों की लाइट बंद करने की अपील की। यह पूरी तरह से स्वैच्छिक था, लेकिन हरियाणा में एक मुसलमान परिवार ने लाइट बंद नहीं की, तो उसके पड़ोसियों ने हमला बोल दिया। यह तो चंद उदाहरण हैं।
इससे पहले डॉक्टर कोरोना को लेकर पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि कोरोना महामारी से अधिक इसे लेकर सोशल स्टिग्मा अधिक लोगों की जान ले सकता है। यहां पहले से ही मुसलमानों के खिलाफ रोज नई बहस खड़ा करने की कोशिश की जाती है और ऐसे में जब कोरोना वायरस ने भारत में दस्तक दी, तो मुस्लिम पहले ही बैकफुट पर नजर आए।

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