मास्क पहनकर यूं 5 करोड़ जान लेने वाले स्पेनिश फ्लू से जीती जंग, अब कोरोना को हराने की बारी

1918 में जब स्पेनिश फ्लू महामारी फैली, तो इससे अमेरिका सहित यूरोपीय देशों में मास्क पहनने की संस्कृति ने जन्म ली। इससे तब 5 करोड़ से अधिक लोगों की जान लेने वाली इस महामारी पर काबू पाने में उम्मीद से अधिक मदद मिली। लेकिन लगता है 100 साल बाद अमेरिका और यूरोपीय देश इस मास्क संस्कृति को भूल गए, जिससे अमेरिका और इटली, स्पेन, जर्मनी, इंग्लैंड, फ्रांस जैसे में कोरोना वायरस का कहर बरप रहा। कोरोना वायरस की वजह से रविवार रात 1:38 बजे तक कुल 68,499 में से 51878 मौतें इन्हीं छह देशों में हुई हैं। अब शायद फिर इन्हें मास्क कानून लागू करना पड़े...

फोटोः इंटरनेट
तो हम बातें कर रहे थे स्पेनिश फ्लू की। आख़िर कैसे मास्क कल्चर ने इस महामारी को हराने में मदद की। अभी तक हमने बातें की कि अमेरिका में पहली बार कानून लागू किया गया कि मास्क न पहनना एक अपराध होगा। पॉपुलर कल्चर में इसे लेकर जागरूकता अभियान शुरू किए गए। महामारी से डर के चलते हर कोई मास्क पहन रहा था। इस अभियान ने काम करना शुरू कर दिया। अमेरिका के कई राज्यों जैसे कैलिफोर्निया वगैरह ने भी यही कदम उठाया। मास्क को लेकर अनिवार्यता सिर्फ अमेरिका तक ही सीमित नहीं रही। अटलांटिक देश भी इसी राह पर चले और स्पेनिश फ्लू से बचाव का उपाय मास्क में ही ढूंढ़ा। फ्रांस में एक समिति ने नवंबर 1918 की शुरुआत में मास्क पहनने की सिफारिश की। वहीं, इंग्लैंड का मैनचेस्टर भी इसमें आगे आया। स्पेनिश फ्लू से बचने के लिए जापान में स्टूडेंट प्रोटेक्टिव मास्क पहनकर स्कूल जाते थे। उधर, लॉस एंजिल्स के मेयर ने सरकारी तौर पर मास्क की खरीदारी की और लोगों से मास्क पहनने को कहा।
अब दिसंबर 1918 तक धीरे-धीरे पूरे यूरोप और उत्तरी अमेरिका में मास्क के इस्तेमाल में तेजी आई। इस दौरान मास्क की मांग इतनी बढ़ गई कि इसे बनाने वाली कंपनियां आपूर्ति को पूरा नहीं कर पा रही थीं।
फिर भी मास्क का चलन हर जगह बढ़ गया। यहां तक कि सफाई कर्मचारी से लेकर पुलिस भी बिना मास्क के नजर नहीं आती थी। युद्ध के मैदानों में सैनिक चेहरे पर मास्क और हाथों में हथियार लिए नजर आते। तब एक मशहूर जुमला चला था कि सैनिक युद्ध के दौरान गैस मास्क पहनें और घरों पर इन्फ्लुएंजा मास्क। दरअसल, जंग के मैदान में गैस चैंबर और इस तरह के खतरनाक गैसों से बचने के लिए सैनिक गैस मास्क पहनते थे। फिर स्पेनिश फ्लू आया, तो उससे बचने के लिए इन्फ्लुएंजा मास्क। तब वॉशिंगटन टाइम्स ने एक रिपोर्ट छापी थी कि घर लौटने वाले सैनिकों के लिए 45 हजार मास्क दिए जाएंगे।
जब 11 नवंबर 1918 को पहला विश्वयुद्ध खत्म हुआ, तो गैस-मास्क बनाने वाली कंपनियों का कारोबार ठप हो गया। ऐसे में उन्होंने स्पेनिश फ्लू से बचाव के लिए इन्फ्लुएंजा मास्क बनाना शुरू कर दिया। उस वक्त अमेरिकी अखबार सैन फ्रांसिस्को क्रॉनिकल ने फ्रंट पेज पर शहर के शीर्ष जजों और नेताओं की मास्क पहने तस्वीर छापी थी। शायद वह 25 अक्टूबर 1918 के दिन का अखबार था।
जल्द ही ऐसा वक्त आ गया कि कोई भी बिना मास्क के नजर नहीं आता। हर तरफ सभी मास्क पहने ही दिखते। बेशक कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने नियमों की धज्जियां उड़ाईं। तब का एक किस्सा है कि एक बॉक्सिंग मैच के दौरान कैलिफोर्निया में लगभग 50 फीसदी पुरुष दर्शकों ने मास्क नहीं पहन रखे थे। आज की तरह हर जगह सीसीटीवी या कैमरे नहीं होते थे। तब इनकी एक फोटो फोटोग्राफर ने ले ली थी। पुलिस ने उस वक्त फोटो को एनलार्ज यानी बड़ा किया और उस तस्वीर का इस्तेमाल करके मास्क न पहनने वालों की पहचान की। सभी को सजा के तौर पर "चैरिटी के लिए दान" करने और फिर चेतावनी देकर छोड़ दिया गया।
तो मास्क पहनने से फायदा हुआ?
दिसंबर 1918 की शुरुआत में लंदन के टाइम्स अखबार ने बताया कि अमेरिका में डॉक्टरों ने साबित किया कि स्पेनिश फ्लू लोगों के संपर्क में आने और संक्रमण की वजह से फैलता है। उस वक्त लंदन के एक अस्पताल में सभी कर्मचारियों और मरीजों को हमेशा मास्क पहने रहने का निर्देश जारी किया गया। अखबार ने एक जहाज के हवाले से इसकी सफलता की कहानी पेश की। टाइम्स ने बताया कि अमेरिका और इंग्लैंड के बीच न्यूयॉर्क से आने वाले जहाजों पर संक्रमण दर अधिक थी। इसके बाद जहाज के सभी चालक दल और यात्रियों को अमेरिका लौटते वक्त मास्क पहनने का आदेश दिया गया। इसके बाद जब जहाज अमेरिका पहुंचा, तो कोई भी यात्री संक्रमित नहीं पाया गया। कुछ इस तरह स्पेनिश फ्लू से बचाव में मास्क की जरूरत और सफलता की कहानी पेश की गई। इस तरह की खबरें तब दुनिया के कई देशों जापान, चीन के अखबारों में सामने आई, जिसमें बताया गया कि मास्क पहनने से संक्रमण की दर कम हो गई।
दिसंबर 1918 आते-आते स्पेनिश फ्लू का दूसरा दौर समाप्त हो गया। अमेरिकी शहरों और राज्यों में स्पेनिश फ्लू के मामले में अनिवार्य रूप से मास्क पहनने के कानून को खत्म करने की जरूरत महसूस की गई और अंततः 10 दिसंबर, 1918 को शिकागो के एक अखबार में इसकी खबर छपी कि अब इस मास्क कानून की जरूरत नहीं रह गई है। संभवतः ऐसा इसलिए था कि मास्क ने संक्रमण से फैलने वाले स्पेनिश फ्लू को पूरी तरह न सही, तो बहुत हद तक या इससे कहीं अधिक काबू पाने में मदद की थी।
अब आज क्या, कोरोना वायरस और फिर वही मास्क की जरूरत

1918 में अमेरिका ने सख्ती और तत्परता से मास्क को अपनाया था। लेकिन, एक सदी बाद अमेरिका ही अपनी सफलता से सबक नहीं सीख पाया। उस सबक को सीखा है, एशियाई देशों ने। संभवतः यही वजह है कि आज अमेरिका सहित यूरोप के तमाम देशों को चीन सहित कई देशों से मास्क और दास्तानों का आयात बड़ी संख्या में करना पड़ रह है। एशियाई देशों ने इस वजह से भी मास्क को अपनाया, एक सदी के बीच-बीच में इसने हैजा, टाइफाइड और अन्य संक्रामक रोगों के प्रकोपों ​​से निपटा है। इन संक्रामक रोगों के प्रकोप ने मास्क पहनने वाली संस्कृति जिंदा रखने में मदद की है। वहीं, अमेरिका और यूरोप में ऐसा नहीं देखा गया। अब लगता है कि कोरोना वायरस महामारी से फिर से उनकी सोच में बदलाव आए।

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