होली, समानता का त्योहार और भंग

होली यानी रंगों का उत्सव। हरा-नीला-पीला न जाने कितने रंगों से सराबोर लोग। हर किसी के चेहरे पर रंगों की चमक। एक ही रंग में रंगे लोग। एक तरह से कहें कि दुनिया में रंग के धार पर जो भेदभाव है, उसका सबसे बेहतरीन निराकरण है, होली। किसी गोरे के दिल में न तो सुपीरियर होने का ख्याल आएगा न ही किसी काले या सांवले को इंफीरियरीटी कॉम्प्लेक्स होगी। सभी एक ही रंग में रंगे हुए। यानी विश्व समानता का अद्भुत त्योहार है होली।
इसके बाद आते हैं, होली के हुड़दंग पर। भंग। जी हां, यदि भंग का सेवन आपने न किया तो होली का मजा बेमजा ही समझिए। पर इसमें भी एक पेंच है। भंग की क्वालिटी। अपनी रचना राग दरबारी में श्रीलाल शुक्ल जी ने भंग की तारीफ कुछ यूं की है....जरा ध्यान से गौर फरमाइएगा, भंग पीनेवालों में भंग पीसना भी एक कला है, कविता है, करतब है, रस्म है। वैसे टके की पत्ती को चबाकर ऊपर से पानी पी लिया जाए तो अच्छा-खासा नशा आ जाएगा, पर यह नशेबाजी सस्ती है। आदर्श स्थिति तो यह है कि पत्ती के साथ बादाम, पिस्ता, गुलकंद, दूध-मलाई आदि का प्रयोग किया जाए। भंग को इतना पीसा जाए कि लोढ़ा और सिल चिपककर एक हो जाएं। पीने के पहले शंकर भगवान की तारीफ में छंद सुनाए जाएं और इस भंग पीने की कार्रवाई को व्यक्तिगत न बनाकर उसे सामूहिक रूप दिया जाए। बात व्यंग्यात्मक है, पर है सौ टका सही। बुरा न मानो होली है...........

2 comments:

  1. रंग बिरंगे त्यौहार होली की रंगारंग शुभकामनाए

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  2. बढ़िया आलेख!!



    ये रंग भरा त्यौहार, चलो हम होली खेलें
    प्रीत की बहे बयार, चलो हम होली खेलें.
    पाले जितने द्वेष, चलो उनको बिसरा दें,
    खुशी की हो बौछार,चलो हम होली खेलें.


    आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.

    -समीर लाल ’समीर’

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