देश हमारा भूखा- नंगा

दोस्तों आप सबकी मदद चाहिए। दरअसल काफी दिनों से बाबा नागार्जुन की एक कविता का नाम याद करने की कोशिश कर रहा हूं। पर काफी मेहनत-मशक्कत के बाद भी मुझे याद नहीं आ पा रहा है। हालांकि उसकी चंद लाइनें याद हैं मुझे। उसे पोस्ट कर रहा हूं और आपसे उम्मीद करता हूं कि आप जरूर इस कविता का नाम याद करने में मेरी मदद करेंगे। जरूर बताइएगा कि यह उनकी कौन सी रचना है। कविता के बीच की पंक्तियां कुछ इस तरह हैं....

देश हमारा भूखा नंगा,
घायल है बेकारी से,
मिले न रोजी-रोटी भटके
दर-दर बने भिखारे से,
स्वाभिमान-सम्मान कहां है,
होली है इंसानों की............

बस मुझे इतना ही याद है। आपसे उम्मीद है कि आप जरूर मेरी मदद करेंगे कि नागार्जुन की कौन सी रचना का यह भाग है।

7 comments:

  1. अभी एक दम याद नहीं आ रहा ,,लेकिन पता करके बताता हूँ ।

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  2. देश हमारा भूखा नंगा, घायल है बेकारी से,

    मिले न रोजी, रोटी, भटके दर-दर बने भिखारी से,

    स्वाभिमान सम्मान कहां है, होली है इंसान की,

    बदला सत्य, अहिंसा, बदली लाठी गोले डंडे हैं।

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  3. झूमे बाली धान की...कविता का शीर्षक है. उपरोक्त उसी के अंश हैं. नागार्जुन रचनावली में यह कविता है.

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  4. आपके याहू ईमेल पर स्कैन कॉपी भेज दी है पूरी रचना की.

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  5. झूमे बाली धान की,1971

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