कलम का सिपाही या मजदूर

भारतीय शिक्षा में बदलाव अभी भी दूर की कौड़ी नजर आ रही है। शिक्षक क्लास में आते ही अपना ज्ञान बघारने लगते हैं। हालांकि उनके द्वारा बघारा जाने वला ज्ञान भी उनका मौलिक ज्ञान नहीं होता है। वह क्लास में आते ही बकर-बकर करने लगते हैं। हम छात्र उनकी बातों को कलम का सिपाही न बनकर, कलम का मजदूर नजर आने लगते हैं। शिक्षक न अपने दिमाग पर जोर देना चाहते हैं और यह तो कतई ही नहीं चाहते कि विद्यार्थी भी अपनी दिमागों पर जोर दें। ऐसा होने पर उनकी हालत पतली होने लगेगी। यह बात किसी प्राथमिक क्लास की नहीं है। पीजी के क्लास की है। आज कुछ हुआ यूं कि प्रेमचंद की रचना साहित्य का उद्देश्य पढ़ाते-पढ़ाते, गुरूजी महिलाओं का उद्देश्य पढ़ाने लगे। उनके मुताबिक, जिस तरह प्रेमचंद की रचनाओं का उद्देश्य आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद है, उसी तरह महिलाओं का भी उद्देश्य है। वह है शादी करके ससुराल जाना। यह बातें गुरूजी ने क्लास के दौरान कुछ लड़कियों पर अपनी विशेष टिप्पणी के दौरान बघेरी।
एक तरह से देखा जाए तो अभी भी हमारी मानसिकता बदली नहीं है। जब कभी भी और कहीं भी हमें कोई मौका महिलाओं के खिलाफ कोई टीका-टिप्पणी का मिलता है, उसे करने से हम चूकते नहीं।
इस दौरान एक बात और मुझे समझ में आई वह यह कि शिक्षक जब हमें पढ़ाते हैं तो वह खास कर दो बातों पर जरूर ध्यान देते हैं। वैसी बातें जिनपर उन्हें ज्यादा आत्मविश्वास होता है, उसके बारे मे वह कहेंगे इसे करना थोडा कठिन है। हालांकि वह बात हर छात्र जानता है कि जिसे गुरूजी कठिन बता रहे हैं, वह बेहद आसान है। दूसरी बात वह किसी चीज को यदि वह आसान बता रहे हों तो इसका मतलब होता है कि वाकई वह काम वाकई मुश्किल है। या तो वह हमारा हौसला अफजाई करने के लिए उसे आसान बताते हैं या फिर इज्जत का सवाल उनके लिए बन जाता है साथ ही छात्रों के लिए भी। इसलिए छात्र भी उसके बारे में टीचर से नहीं पूछते हैं। यानी इस मनोवैज्ञानिक खेल में अपने अचूक अस्त्र का इस्तेमाल कर गुरू जी चोर दरवाजे से अपना पिंड छुड़ा लेते हैं।
एक तरह से यदि कहा जाए कि हमारी शिक्षा पद्धति अपने मूल रास्ते से भटक गई है तो गलत कतई नहीं होगा। वह भी यह अपने घर में अपना रास्ता भूल गई है। ऐसे में मुझे दुष्यंत की दो पंक्तियां याद आती है कि किस तरह इसे रास्ते पर लाया जा सकता है या उसका समाधान क्या है? या फिर समाधान क्यों नही निकल पा रहा है....
मेले में भटके होते तो कोई घर पहुंचा जाता।
हम घर में भटके हैं, कैसे ठौर-ठिकाने आएंगे।।

2 comments:

  1. sochne ko vivash kar diya hai tumhaari post ne..
    sachmuch..ek vichaarneey aalekh..
    didi..

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  2. हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!

    लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.

    अनेक शुभकामनाएँ.

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