द्रविड़ की दीनता या दिलेरी

क्रिकेट के इतिहास में राहुल द्रविड़ के लिए क्या जगह होगी? क्या उन्हें एक महान खिलाड़ी के तौर पर याद किया जाएगा या भारतीय क्रिकेट के दीवार के तौर पर. या फिर एक ऐसे खिलाड़ी के तौर पर जिसकी सफलता हमेशा उसके अपने समकालीन साथी खिलाड़ियों की सफलता के तले दबी रही. अपना पहला ही टेस्ट खेलते हुए द्रविड़ ने 95 रन बनाए. यह किसी भी खिलाड़ी के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि होती है कि वह अपने पहले मैच में बेहतर प्रदर्शन करे. द्रविड़ ने यही किया, लेकिन उन्हें बधाई नहीं दी जा सकती थी क्योंकि उसी मैच में सौरव गांगुली ने 131 रन बनाए और गांगुली का भी वह पहला मैच था. यह कोई पहला उदाहरण नहीं है. द्रविड़ की किस्मत ही कुछ ऐसी रही है. ज़रा याद कीजिए जब भारत ने कोलकाता के ईडेन गार्डेन में ऑस्ट्रेलियाई टीम के लगातार सोलह टेस्ट मैच जातने के रिकॉर्ड को तोड़ा था. उस टेस्ट में भी द्रविड़ के योगदान को कतई नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. उस टेस्ट में द्रविड़ ने 180 रन का आंकड़ा छुआ तो उन्हीं के साथ दूसरे छोर पर खड़े वीवीएस लक्ष्मण ने 281 रन की पारी खेल डाली. द्रविड़ के साथ यह नाइंसाफी किसी और ने नहीं, बल्कि ख़ुद उनकी तक़दीर ने ही की. वह हमेशा बड़े पेड़ के ही तले दबे रहे. उनकी उपलब्धि किसी से भी कम नहीं है. पर जब जब द्रविड़ ने विशिष्ट प्रदर्शन किया, कोई दूसरा खिलाड़ी उनसे बेहतर खेल गया. वनडे मैच में जब उन्होंने उस समय का अपना सबसे बड़ा स्कोर 145 रन बनाए तो उसी पारी में सौरव गांगुली ने 183 रनों की पारी खेली. एक बार फिर जब द्रविड़ ने अपना यह रिकॉर्ड तोड़ते हुए न्यूजीलैंड के खिलाफ 153 रन मारे तो उसी पारी में सचिन तेंदुलकर ने नाबाद रहते हुए 186 रन ठोक डाले. इससे यह अंदाज़ा लगाना आसान मालूम पड़ता है कि द्रविड़ गलत दौर में पैदा हो गए जिसकी वजह से उन्हें सचिन तेंदुलकर और गांगुली जैसे खिलाड़ियों की छाया में खेलना पड़ा. लेकिन द्रविड़ ने हमेशा अपनी अहमियत साबित की. कई दफ़ा तो इन भारतीय दिग्गजों से बेहतर खेल दिखाया. जब भारतीय टीम के धुरंधर एक एक कर ताश के पत्तों की तरह ढेर हो जाते हैं तो यही दीवार टीम इंडिया की बुनियाद मज़बूत करता है. श्रीलंका के खिलाफ अहमदाबाद में खेले गए टेस्ट में 32 रन पर भारत के चार विकेट गिर गए थे. सहवाग, तेंदुलकर, लक्ष्मण पैवेलियन लौट चुके थे, मगर दर्शकों की उम्मीदें कायम थीं. इसलिए कि द्रविड़ क्रीज पर थे. उन्होंने निराश भी नहीं किया और भारत को 400 रनों के पार ले गए.

3 comments:

  1. निःसंदेह राहुल द्रविड़ एक सुलझे हुए खिलाड़ी हैं...
    यह भी सच है की कई मामलों में किस्मत ही काम करती है....शायद राहुल के साथ भी यही हो...लेकिन हम सबसे तो अच्छी किस्मत ज़रूर है उनकी...
    हमारी ढेर सारी शुभकामनायें उनके लिए..
    मुझे भी बहुत पसंद हैं राहुल ..
    थ्री चियर्स फॉर राहुल...
    हिप हिप.... हुर्रे...
    हिप हिप.... हुर्रे...
    हिप हिप.... हुर्रे...!!!
    didi..

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  2. दीनता ही काहो अभी तो..हा हा!!

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    हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!

    लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.

    अनेक शुभकामनाएँ.

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  3. दीनता कैसी??राहुल के योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता.और जो भी क्रिकेट को सही अर्थों में समझते हैं, वे राहुल की महत्ता को अच्छी तरह जानते है .वैसे भी राहुल बहुत ही प्राइवेट पर्सन हैं .उन्हें दिखावा ज्यादा पसंद नहीं. वह मैदान पर या मैदान के बाहर उलटी सीधी हरकतें नहीं करते और बयानबाजी भी नहीं करते. इसलिए भी ख़बरों में ज्यादा नहीं रहते. और लक्ष्मण ने भले ही २८१ रन बनाएं हों पर दूसरे छोर पर राहुल की भागेदारी को कोई नहीं भूला.

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