इनको मिले भ्रष्टाचार का भारत रत्न

शहर में कॉफी हाउस, सेमीनार, लाइब्रेरी और विधानसभा या संसद की जो उपयोगता है, वहीं देहात में सड़क के किनारे बनी हुई पुलिया की है। यानी लोग यहीं बैठते हैं और गप लड़ाते हैं। पर यदि शहरों की बात करें तो यहां बुद्धिजीवियों की तादाद बहुत ज्यादा है। ये एक विचित्र प्रजाति के जीव होते हैं। इनका काम पानी पी-पीकर सभा, गोष्ठी या फिर जहां मौका मिल जाए वहीं गरीबों को आदर्श का ज्ञान देने लगते हैं। बड़ी-बड़ी इमारतों में बैठकर गरीबी दूर करने की बात करते हैं। अमेरका और ब्रिटेन की नीतियों पर चलने के लिए भारत और उसकी सरकार को खुलेआम मुंहफट होकर गालियों की पुष्पमाला भेंट करते हैं। पर हालत यह है कि हैं तो बुद्धिजीवी, विलायत या अमेरका का चक्कर लगाने के लिए यह साबित करना पड़ जाए कि हम बाप की औलाद नहीं हैं, तो साबित भी कर देंगे। चौराहे पर इनको दस जूते मार लो, पर एकबार अमेरिका भेज दो। ये हैं बुद्धिजीवी। जब बात शहरों की चली है और आजकल शीला सरकार दिल्ली को कॉमनवेल्थ खेल के नाम पर दिल्ली को शंघाई और पेरिस बनाना चाहती है तो जरा इस पर भी ध्यान दे देते हैं इसका असर किस तरह पड़ेगा। आजादी मिलने के बाद यदि भारत के किसी एक वर्ग ने तरक्की की है तो वह है साइकिल-रिक्शाचालकों का वर्ग। जिस तेजी से यह वर्ग पनपा है, उससे यही साबित होता है कि हमारी आर्थिक नीतियां बहुत बढ़ियां हैं और यहां के घोड़े बहुत घटिया हैं। पहले घोड़ा गाड़ी का जो इस्तेमाल होता था। खैर इससे यह भी साबित होता है कि समाजवादी समाज की स्थापना के सिलसिले में हमने पहले तो घोड़े और मनुष्य के बीच भेदभाव को मिटाया है और अब मनुष्य एवं मनुष्य के बीच भेदभाव को मिटाने की सोचेंगे। क्योंकि पहले जिनके पास घोड़े थे वह घोड़ा घास खाकर भले ही जिंदा रह लेता हो, घोड़ागाड़ी वाला भी इसी तरकीब से जी लेता होगा, यह मानना कठिन है। एक बात यह है कि खाद्य विज्ञान का सिद्धांत कहता है कि आदमी की अक्ल तो घास खाकर जिंदा रह लेती है, आदमी खुद इस तरह नहीं रह सकता।
एक और बात तो आधुनिक युग के हिसाब से सबसे बड़ा क्रांतिकारी बदलाव है। वह यह कि लोग अब किसी भी तरकीब से अमीर बन जाने से ही सम्मानपूर्ण बन जाते हैं। इसीलिए देश की किसी भी संस्था, मंत्रालय, विभाग या आम आदमी के टैक्स का पैसा खा लेने भर से आदमी का सम्मान नष्ट नहीं होता है। मधु कोड़ा पांच हजार से भी ज्यादा करोड़ रुपए खाकर अपनी बीवी को चुनाव जीता ही लिया। लालू चारा खाकर रेल मंत्री बने ही। मायावती, जयललिता, मुलायम सिंह और सांसद जिनकी आमदनी आर्थिक मंदी में भी १० करोड़ के हिसाब से बढ़ी। वह भी सम्माननीय हैं। अब सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें सम्माननीय मानते हुए इन मामलो में जांच के आदेश नहीं देने का फैसला लिया है। काम के नाम पर ये नेता हर काम चुनाव के पहले ही कराना पसंद करते हैं। शायद चुनाव कानून में लिखा है या पता नहीं क्यों सभी बड़े या छोटे नेता चुनाव के कुछ महीना पहले अपने-अपने चुनाव-क्षेत्र का सुधार कराते हैं। कोई सड़कें बिछवाता है, कोई पुल बनवाता है तो कोई गरीबों को कपड़े और कंबल दान में देता है।
सहयोग-राग दरबारी

4 comments:

  1. यही यथार्थ है..आभार प्रस्तुत करने का.

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  2. हाहाहाहा....
    बिल्कुल सही बात कही चंदन...
    जो इंसान की हदों को पार करके जानवरों का अनाज दाना भी चुग जाए...जो फाइव स्टार होटल के कोमोड पर बैठकर देश की बीपीएल आबादी के कल्याण की रूपरेखाएं कैयार करे, उसे बेहतर भला कौन हो सकता है, भारत रत्न

    आलोक साहिल

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  3. सहयोग वाली बात बढ़िया लगी...

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  4. sahyog ka zikra isliye ki padhe ke bad hi idea dimag me click kiya so dena hi tha credit.

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