जमाना मिसफिट का है

आज परसाई साहब को पढ़ रहा था। उनकी रचनाओं मे एक तरह का जादू है। जो बात उन्होंने अपनी व्यंग्य रचना के जरिए आज से वर्षों पहले कही थी। वह आज भी सटीक और मारक है। उदाहरण के तौर यदि मैं बात करूं अपने लोकतंत्र की, जहां संसद में हर साल अपराधियों और गुंडों की टोली बढ़ती जा रही है। तो परसाई जी ने इस पर क्या खूब कहा था कि यह शायद हमारे ही जनतंत्र में होता है कि गुंडे भी चुनाव जीतकर शासन करने पहुंच जाते हैं। जुए के घर चलाने वाले, शराबखोरी करने वाले, गुंडागिरी करने वाले बड़े-बड़े निर्वाचित पदों पर हमारे ही मुल्क में विराजमान हैं।
हाल में जब लोकसभा का चुनाव हुआ तो उस दौरान यह भी शोर उठा था कि हम अपनी तुलना अमेरिका से तो करते हैं, लेकिन हन उनकी अच्छाइयों को क्यों नहीं अपनाते? मसलन उनके नेता येल यूनिवर्सिटी से पढ़कर चुनाव लड़ते हैं तो हमारे नेता जेल से चुनाव लड़ते हैं। अभी इस साल बिहार में चुनाव होना है, देखते हैं कितने ऐसे नेता अपनी किस्मत बंद कोठरी से आजमाते हैं और आज जो जेल के हवलदार से सर-सर कहकर बात करते हैं कल जेलर को हुक्म देने लगेंगे।
एकबार फिर परसाई साहब की शब्दों में कहूं तो यह जमाना मिसफिट्स का हो गया है भाई। जिसे जुआखाना चलाना चाहिए वह मंत्री है, जिसे क्रिमिनल होना चाहिए वह पुलिस अफसर है, जिसे दलाला होना चाहिए वह प्रोफेसर है। जिसे जेल में होना चाहिए वह मजिस्ट्रेट है। यानी जिसे जहां होना चाहिए वह वहां नहीं है।

4 comments:

  1. शुक्रिया वैसे सीधी बात में मिलना चाहेंगे क्या...?
    अच्छा लिखतें हैं आप
    मान गये हम भाई

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  2. बहुत खूब भाई...परसाई जी नज़र आ रहे हैं...

    आलोक साहिल

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  3. परसाई जी तो सदाबहार लिख गये..अब आपको सुन रहे हैं.

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