वैशाली : नई छवि गढ़ने को संघर्षरत राज्य का ज़िला

वैशाली की पहचान क्या है? यदि सीधी बात कहूं तो आज अपनी खुद की पहचान और नई छवि गढ़ने को संघर्षरत राज्य बिहार का एक ज़िला है। पर क्या किसी जगह या स्थान की पहचान इन्ही वजहों से होती है? अगर होती भी है तो यह एक महज छोटा और अधूरा पहलू भर ही है। मुझे ज्यादा नहीं पता जिस ज़िले में मैं रहता हूं उसकी अहमियत क्या है? पर हां इतना जरूर पता है कि वैशाली का नाम जब पहली बार सामने आता है तो इसकी कई छवि आंखों के सामने गुजरने लगती है। यदि वैशाली को जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर से याद रखने की कोशिश करें तो बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध पीछे छूट जाते हैं। जब बात वैशाली की हो और आम्रपाली का जिक्र न हो तो इसकी पहचान ही अधूरी समझिए। यानी इस तरह देखें तो वैशाली की महज एक नहीं कई पहचान है। राजा विशाल जिनके नाम पर इसका नाम वैशाली पड़ा। या फिर इसे आप गणतंत्र की जननी कह लीजिए। आप हर तरह से वैशाली के इतिहास और इसकी पहचान को याद रखने, जानने और समझने के लिए स्वतंत्र हैं। पर यदि कोई चाहे कि हम इसे किसी एक पहचान में बांध कर सीमित करें तो यह शायद नामुमकिन है। शायद इसलिए कि इन सभी में से किसी एक पहचान के दायरे में वैशाली को समेटना इतिहास के साथ नाइंसाफी तो होगी ही, यह गैर बराबरी या अन्याय होगा उन शखसियतों और धरोहरों के साथ जिनका जीवन वैशाली के साथ प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर जुड़ा हुआ है।
चलिए तो एक नजर वैशाली पर डालते हैं। वैशाली प्राचीन लिच्छवी की राजधानी और दुनिया का सबसे पहला गणतंत्र है। यह बात छठी शताब्दी ईसापूर्व की है। 599 ईसापूर्व भगवान महावीर का यहां जन्म हुआ। यह वैशाली की खुशनसीबी ही थी कि अपनी मृत्यु यानी महापरिनिर्वाण से पहले अपना आखिरी उपदेश महात्मा बुद्ध ने यहीं दिया। यानी वैशाली दो धर्मों का इतिहास और उनके इतिहास पुरुष को अपने समेटे हुए है। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन वैशाली में सात हजार सात सौ सात खूबसूरत ग्राउंड और इतने ही कमल के तालाब थे। वैशाली का नाम महाभारत युग के राजा विशाल के नाम पड़ा था। हालांकि कई लोग यह भी कहते हैं कि चूंकि यह काफी विशाल था यानी राज्य काफी दूर तक फैला हुआ था, इसीलिए विशाल क्षेत्रफल होने के नाते इसका नाम वैशाली पड़ा। वैशाली के बार में कहा जाता है कि महात्मा बुद्ध गया के वट वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्ति के बाद पहली बार वैशाली ही आए। मगर इससे भी दिलचस्प बात तो यह है कि उन्हें निमंत्रण मिला था वैशाली के राजा की ओर से, लेकिन उन्होंने राजा के निमंत्रण को ठुकराकर सबसे पहले वैशाली की नगरवधू आम्रपाली से मुलाकात की।

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